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मेरी शादी🤭🤭
शादी नाम सुनते ही मन में लड्डू फ़ूटने लगते हैं
इसका अंजाम जो भी हो रिश्ता अच्छा निभेगा या बुरा उपर वाला ही जाने
परंतु "शादी "शब्द सुनकर बड़ा सुकून सा मिलता हैं
कब होगी मेरी शादी ना जी ना
ये सवाल नही हैं मेरे मन में बल्कि ये हैं की कैसे होगी , मेरी शादी किस तरह होगी ?
वैसे मैं अपना मत रखना चाहती हूं की मैं "अर्चना " क्या चाहती हूं मेरी शादी को लेकर
देखिए मैं एक लड़के से बेइंतहा प्रेम करती हूं और वो मेरा पहले दोस्त हैं फिर मेरा प्रेमी और देखिए तो वो मेरी जाति का भी हैं परंतु कहानी में twist हैं
twist ये हैं की मैं चाहती हूं की मेरी जो शादी हैं वो ऐसे लड़के से हो जिस से मेरी दोस्ती हो पहले पहल तो फिर प्यार व्यार फिर बात आए शादी की अब आप सोच रहे होंगे की तो कर लो अपने प्रियतम से शादी तो यार सबके अपने संस्कार हैं मैं उन्हें ऐसा कुछ भी करने पर मजबूर नही करना चाहती की शादी हो जाए लेकिन हम दोनो के बीच का प्रेम समाप्त हो जाए
क्योंकि वो अपने माता पिता की अवज्ञा या अवहेलना नहीं करेंगे
और मैं ऐसा करने देना भी नहीं चाहूंगी चुकी मैं उनसे प्रेम करती हूं तो वो यहीं सोच सकते हैं की ये मुझसे प्रेम करती हैं इसलिए ऐसा चाहती हैं की हमारी शादी हो जाए
ना की भी इसका कोई मंतव्य हैं
मैं खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मरना चाहती और न ही मैं उनके प्यार को खोना चाहती हूं
बहरहाल
मुद्दे की बात पर आते हैं

देखो यार मैं ठहरी शहर की लड़की
और मेरे माता पिता ने मुझे आज़ादी दी हैं
और कभी भी मेरे लड़के जो दोस्त हैं उन पर शक नहीं किया
मगर जितना मिले उतना कम

तो हम बात कर रहे थे की लड़का दोस्त बने फिर प्यार व्यार फिर बात ब्याह तक आए
मगर यहां मैं चाहती हूं की लड़का हमारी जाती का तो बिल्कुल भी न हों, क्योंकि जात पात का रोना रोना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं
और लड़का एक ऐसा समझदार हो जो ये न समझे की मैं उससे ब्याह इसलिए करना चाहती हूं क्योंकि हम दोनो प्रेम युगल हैं बल्कि इसलिए भी करना चाहती हूं क्योंकि मैं इस प्रथा को तोड़ सकू की जात पात जरूरी हैं बजाए दो प्रणय सूत्र में बंधे लोगों की खुशी से,
मैं चाहती हूं की लड़का मुझे भगाने की बजाए हमारे घरवालों को राज़ी करे और मैं भी वही करू
ना की बेवकूफों की तरह भागकर विवाह बंधन में बंध जाऊं
बल्कि विवाह बंधन में बंधकर सबकी सोच को बदल दे हम दोनों
ताकि हमारा परिवार और जो मुझसे या उनसे जुड़े हुए हर व्यक्ति को समझ आए की दो व्यक्तियों की सूज बुझ , समझदारी , प्रेम ये सब आवश्यक हैं ना की भी जात पात
मैं इस बेकार की रूढ़ी वादी जाति पाती की भ्रांति को तोड़ना चाहती हूं
ना की भी प्रेम में पड़कर उस व्यक्ति पर सरस्व खुद को उसे ही सौंप कर मां पापा का दिल दुखाना चाहती हूं
मैं सबको सहमती से उस इंसान से विवाह करना चाहती हूं
और मेरा ऐसा करना तब सफल माना जायेगा जब सबकी सोच परिवर्तित हो जाएगी
वर्ना तो बस मेरा उस व्यक्ति से विवाह करना इतना मात्र रह जाएगा की हमारी लव मैरिज हैं
जो की मुझे बिल्कुल मंजूर नहीं होगा

और हां वो व्यक्ति मेरी जाति का नहीं होगा और वो व्यक्ति मेरी पसंद का होगा और समझदार होंगा
ना की भी कोई भी, किसी भी गली का छपरी।

जो समझे की आख़िर जाति इतनी अवश्य भी नहीं हैं
मैं खतम करना चाहती हूं इस बेतुकी सी रीत को
हा मगर उसके लिए ऐसा व्यक्ति मेरी जिंदगी में होना चाहिए जो मुझसे विवाह करना चाहे
मगर मेरे उस मंतव्य को भी समझे जो मैने अभी साझा किया हैं आप सब से
ना की मुझे अपनी प्रेमिका समझकर मुझे ही दो ज्ञान की बाते पेलने लग जाए

वैसे फिलहाल तो मैं मेरी मोहब्बत में मगरुर हूं और उनसे प्रेम करके , उन्हें अपने प्रियतम के रूप में पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूं ,
मगर ख्वाहिश हैं की मैं इस दकियानूसी सोच को खतम कर पाऊं
और ऐसे व्यक्ति को खोज पाऊं जो हिम्मत से मुझे सहयोग कर सके और मेरी इस इच्छा को पूर्ण कर सके
और मुझे समझें मेरे मंतव्य को समझे।

और मैं सोच बदलना चाहती हूं ना की भी लव मैरिज करना
दोनो में बहुत अंतर हैं ।

आशा करती हूं आप भी समझे मेरे मंतव्य को।।✍️✍️

© ak.shayar