...

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अगर तुम साथ हो.....(कहानी)
अगर तुम साथ हो.....
तो क्या फर्क़ है मुझे कि दुनिया चाहें
कितनी भी ख़िलाफ़ हो
अगर तुम साथ हो.....
तो तपती दुपहरी भी सुहाना सवेरा है
अगर तुम साथ हो.....
तो दिल ये सम्भल जाये
अगर तुम साथ हो.....
तो....मेरा सूरज कभी ना डूबे
अगर तुम साथ हो.....
तो ही हर बात है

                                   ***

"पता नहीं मम्मी जी-पापा जी मानेंगे या नहीं...? कोई बात नहीं अगर नहीं मानेंगे तो भी उन्हें मनाऊँगी मैं। आख़िर इतना अच्छा मौका मैं कैसे अपने हाथ से जाने दे सकती हूँ....। इतना अच्छा स्कूल है। इतना बढ़िया एनवायरमेंट है। सब कितने सपोर्टिव हैं। अच्छी ख़ासी सुरक्षा भी है। वहाँ मुझे ग्रो करने का हर एक मौका मिलेगा फ़िर जो दो सालों से मैं पीछे छूट गई हूँ उसकी भी भरपाई हो जायेगी। हाँ.... ये सही रहेगा। ...पर ....पर... अगर नहीं माने तो!"

आस्था ऑटो में बैठी अजीब उधेड़-बुन में उलझी थी। उसकी दोस्त आँचल शहर के बड़े-नामी प्राइवेट स्कूल में टीचर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू देने जा रही थी। उसे घबराहट हो रही थी तो उसने आस्था को उसके साथ चलने को बोला। अब दोनों ठहरी पक्की दोस्त तो भला वो आँचल को कैसे मना सकती थी। वो भी गई।
अब वहाँ हुआ ये कि आँचल का तो सेलेक्शन नहीं हुआ अलबत्ता आस्था की गहरी सोच-समझ, सूझबूझ धैर्य और शैक्षणिक योग्यता को देखकर उस स्कूल के अनुभवी...