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डर या साहस
रात्रि का समय था , वह दिन रविवार था । रास्तों पर लोगों की चहल–पहल और गाड़ियों की आवाजाही भी कम थी…रास्ते बेहद सुनसान थे।
वह शांति से एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए इधर- उधर, कभी बार- बार पीछे मुड़कर बस के लिए नज़रें टिकाए हुए रास्ते पर आगे बढ़ते जा रही थी । वह बहुत जल्दी में थी, क्योंकि उसे घर जल्दी पहुंचना था। लेकिन उसके घर की ओर जाने वाली एक भी बस उसे मिल नहीं रही थी।
वह रविवार का दिन था, उस दिन शहर में रंगीन शिल्प मेला (craft Mela) तथा लोक – नृत्य (folk dance) उत्सव था । वह वहाँ जाने के लिए बहुत उत्सुक थी। उसने अपने परिवार को बताया और शाम को वह मेले में जाने के लिए निकल गई। वह आधे घंटे में जगह पर पहुँच गई, किंतु मेला जहाँ था वह जगह बस स्थानक से कुछ 3km की दूरी पर थी…वहाँ कोई भी बस...