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खुद ही खो गये, खुद के निर्माण में
वर्तमान में हम जिस जगह पर खड़े हैं, वहाँ से महज एक कदम दूर हमारा एक और रूप भी होता है, बस फर्क इतना है के वो हजारों सपने बुने हुए, एक सुव्यवस्थित जीवन शैली को अपनाये हुए एक संतुलित और सुखद जीवन की कल्पना किये बैठा है| पर इस एक कदम की दूरी करोड़ों मीलों से भी कहीं अधिक है| बड़ी विचित्र विडम्बना है कि हम दोहरा जीवन एक ही समय में एक साथ जी रहे हैं, कभी तो जिन्दगी में जो मिला उसी में संतोष कर लेते हैं, तो कभी सांसारिक चकाचौंध में उलझ कर तनाव ग्रसित हो जाते हैं, मसलन इस उलटफेर में हम अपने जीवन की उपयोगिता और गुणवत्ता का निरन्तर ही समूल नाश करते जा रहे हैं| वास्तव में हम कस्तूरी मृग की भांति अनभिज्ञ होकर अनायास ही विचरण करते चले जा रहे हैं, यद्यपि जिसे हम ढूँढ रहे हैं वो हमारे अन्दर ही विद्यमान हैं| जाने अनजाने कितने ही समझौते खुद से करते रहते हैं| मूलत: जो हमारे जीवन की सबसे बड़ी चीज है हम उसे ही कभी स्मरण नहीं करते हैं और वह है खुद की जिंदगी, खुद का खुद पर विश्वास और खुद का खुद से अटूट रिश्ता| अगर आप इस बात को गौर करेंगे तो आप पायेंगे कि हम लोग कभी खुद पर काम नहीं करते हैं| नौकरी करते करते खुद का व्यक्तिव संवारने का समय ही नहीं निकाल पाते हैं| अपने व्यवस्थित रुप तक पहुँचने का मार्ग कुछ खास मुश्किल नहीं है, सिर्फ हमें आज से ही खुद पर काम करने का निश्चय करना पडेगा| अपनी दिनचर्या को प्रभावी ढंग से लम्बे समय तक अमल में लाने का प्रयास करना होगा| तभी हम खुद के प्रति वफादारी और ईमानदारी प्रमाणित करने में सफल हो पायेंगे| किसी भी व्यक्ति विशेष के जीवन में सर्व महत्वपूर्ण स्वयं उस व्यक्ति का जीवन ही होता है| अगर हम खुद की महत्ता को ऊंचा करने का प्रयास नहीं करेंगे तो लोग हमें नीचे गिराने का कोई भी अवसर व्यर्थ नहीं जाने देंगे| किसी महापुरुष के द्वारा यह चरितार्थ भी है कि यदि हम ही अपने जीवन की कद्र नहीं कर सकते तो किसी से भी स्वयं के प्रति सम्मान की अपेक्षा करना सब बेमानी होगा| हमारे जीवन को सिर्फ हम ही सही तरीके से सफल बना सकते हैं, और इसके लिए स्वार्थी बनने से भी नहीं चूकना चाहिए|
© Aman