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क्या हम हिंदी साहित्य के प्रति वफादार हैं । ???
क्या हम वाकई में हिन्दी साहित्य के प्रति वफादार हैं ?
क्या हम ढोंग या छलाव में में जी रहे है ?
क्या हम सच्चे लेखक या कवि का अपमान कर रहें ?
क्या हम नकलची या नकाबपोश बन गए हैं ?
क्या हम मशहूर कवियों, शायरों की कविता, ग़ज़ल, शायरी की चोरी कर हैं या प्रामाणिकता से लिखते, गढ़ते है ?
क्या हम प्रख्यात लेखक की लघुकथा, कहानी, वृतांत, उपन्यास की शब्दों को तोड़-मरोड़कर कर पेशकश करते हैं ?
क्या हम स्वार्थी या महत्वाकांक्षी बन गए हैं ?
क्या हम सही ग़लत का फर्क मिटा चुके हैं ?
क्या हम अजीबो-गरीब, अटपटे नाम रखकर क्या साबित करना चाहते हैं ?
क्या हमें अपनी लेखन क्षमता पर विश्वास खो बैठे हैं जो अपना नाम, परिचय छुपाना पड़ता है ?
क्या हम अपनी भीतर की लेखन क्षमता या सामर्थ्य को पहचानने का यथार्थ प्रयत्न करते हैं या दुसरो कि विचारधारा का आधार लेना पड़ता हैं ?
क्या हम झूठ का सहारा लेकर असली व्यक्तित्व को छूपा रहे है या गिलगिट की भांति अपना व्यवहार बदल रहे हैं ?
क्या हम फैक प्रोफ़ाइल का सहारा लेना पड़ता है ?
क्या हम लाईक, कोमेन्ट , फोलोवर्स के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं ?
क्या हम नकली या झूठी वाहवाही पाने भाषा के नैतिक मूल्यों को भी ठुकराना पड़ता हैं ?
क्या हम मौलिक या स्वरचित प्रतिभा पर विश्वास खो बैठे हैं ?
क्या हम स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगे हैं ?
क्या हम अहंकार और दोगलेपन व्यवहार में जी रहे हैं ?
क्या हम भाषा के सभी नीति नियमों को चुनौती दे रहे हैं ?
क्या हम झूठी प्रतिस्पर्धा में...