आत्म संगनी का नामकरण संस्कार
आज अनायास मन व्यथित था,व्याकुलता कहें या मन में मची उथल पुथल। ऐसे समय में मुझे मेरी आत्म संगनी का मेरे प्रति बढ़ता समर्पण मेरे उद्वेलित कर रहा था।
वोह मेरे जीवन में और मैं उसके मन मंदिर में इस तरह समाहित हो चुके हैं कि चाहकर भी हम अपने आपको उससे प्रथक कर नही पा रहे थे।
जीवन के इस मोड़ पर जहां में अपने भावी जीवन के प्रति आशंकित हो रहा था और चाह रहा था कि मेरे न होने से मेरी आत्म संगनी के जीवन में आघात न हो।इसी आशा से में यह चाह रहा था कि उसको पीड़ा दिए बगैर अपना...