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एक गलत फैसला (भाग 3)
करीब एक सप्ताह पश्चात मीठी सरला के व्यवहार में ज़रा-सा परिवर्तन महसूस करने लगती थी। उसका चिड़चिड़ा होना, हर वक्त बैचेन रहना मीठी को भी खटकने लगा था, परन्तु वह इसको इनकी थकान, और काम का दबाव समझकर नज़रंदाज़ करने की कोशिश करने लगी। वहीं प्रशांत भी अपने कामों में व्यस्त रहने लगा था। ज्यों-त्यों करके एक महीना तो बीत गया पर जाने क्यों सबको ही किसी अनहोनी के होने का आभास हो रहा था।

रेखा! अरी ओ! रेखा, सुनो सरला देवी सो रही होंगी उनको उठा लाओ। मीठी रसोईघर से बोली।

"दीदी! वो तो 7 बजे ही नहा-धो कर कहीं चली गईं थीं। आपको बता कर नहीं गईं क्या?" रेखा रसोईघर में आते हुए बोली।

"अच्छा! कुछ कह कर गई थीं तुमसे कि कहाँ जा रही हैं और कब तक आएंगी?" मीठी ने थोड़ा सोचते हुए रेखा से प्रशन किया।

"न! दीदी। ऐसा कुछ तो नहीं बताया उन्होंने, हांँ जाते-जाते बस इतना कह गईं थीं कि जरूरी काम से जा रही हूंँ, शाम तक आ जाऊंँगी।"

"अच्छा! ठीक।"

_रेखा बचपन से ही वहाँ के वातावरण में पली बढ़ी थी, बेशक नौकरानी थी पर मीठी और सरला ने उसको कभी पराय या छोटा होने का एहसास नहीं होने दिया था।_ अब घर में इतना तंग-सा वातावरण देखकर उसको भी अच्छा नहीं लग रहा था पर वह किसी से कुछ कह न सकी।

शाम को सरला ने आकार बताया कि उसने दफ़्तर से एक सप्ताह का अवकाश लिया है तो घर में सभी खुश हो गए, घर में फिर से वापस कोतुहाल होने लगा। मगर ये खुशियांँ ज्यादा दिन के लिए नहीं थी। कोई था जो उनकी खुशियों पर नज़र डाले हुआ था।

(सरला आख़िर क्या छुपा रही थी? और उसने अचानक ये अवकाश क्यों लिया? कौन था जो उनकी खुशियों पर नज़र डाले हुए था और क्यों?)
© pooja gaur