डोरबेल का रहस्य
#3बजेकीडोरबेल
अदिति हमेशा से अजनबी आवाज़ों से डरती थी। छोटी से छोटी खटपट भी उसके दिल की धड़कनें तेज़ कर देती। लेकिन आज का दिन कुछ अलग था।
उसका पति विवान और बच्चे , शिव और रिया , एक रिश्तेदार के घर गए थे। अदिति अकेली थी और , अजीब बात यह थी कि वह इस अकेलेपन का आनंद ले रही थी। रात के सन्नाटे में उसने अपने लिए खाना बनाया और जल्दी सोने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही उसकी आँख लगने लगी , अचानक डोरबेल की आवाज़ गूंज उठी। यह आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उसने लगभग कूदकर बिस्तर से बाहर आना पड़ा। उसने दीवार घड़ी की ओर देखा—रात के 3 बजकर 7 मिनट। “ इतनी रात को कौन हो सकता है ?” उसने खुद से कहा। उसकी आवाज़ में डर और उलझन दोनों झलक रहे थे। वह दरवाजे की ओर बढ़ी , लेकिन उसे महसूस हुआ कि उसके अंदर एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया है। जैसे सबकुछ अचानक से रुक गया हो। दरवाजे के पास पहुंचकर उसने धीमे से झांका। बाहर घुप अंधेरा था। हवा में हल्की सी सरसराहट थी। लेकिन कोई भी नजर नहीं आया। उसने दरवाजा खोलने की हिम्मत नहीं की। “ शायद कोई शरारत कर रहा है ,” उसने खुद को तसल्ली दी और वापस मुड़ी। लेकिन तभी डोरबेल फिर से बजी। इस बार उसकी आवाज़ पहले से भी तेज़ थी। अदिति का डर अब बढ़ने लगा। उसने दरवाजा खोलने का फैसला किया। झिझकते हुए उसने लॉक खोला और हल्के से दरवाजा खोला। बाहर कोई नहीं था। उसने चारों ओर देखा , लेकिन सड़क खाली थी। हवा में एक अजीब सी खामोशी थी। तभी उसकी नजर फर्श पर पड़ी। एक कागज का टुकड़ा दरवाजे के पास पड़ा था। उसने कागज को उठाया। उस पर लिखा था—"तुमसे मिलने का समय आ गया है।" अदिति के हाथ कांपने लगे। उसका गला सूखने लगा।
उसने कागज को जल्दी से फाड़कर फेंक दिया और दरवाजा बंद कर दिया। अदिति ने दरवाजा बंद करके चैन की सांस लेने की कोशिश की। लेकिन उसकी बेचैनी...
अदिति हमेशा से अजनबी आवाज़ों से डरती थी। छोटी से छोटी खटपट भी उसके दिल की धड़कनें तेज़ कर देती। लेकिन आज का दिन कुछ अलग था।
उसका पति विवान और बच्चे , शिव और रिया , एक रिश्तेदार के घर गए थे। अदिति अकेली थी और , अजीब बात यह थी कि वह इस अकेलेपन का आनंद ले रही थी। रात के सन्नाटे में उसने अपने लिए खाना बनाया और जल्दी सोने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही उसकी आँख लगने लगी , अचानक डोरबेल की आवाज़ गूंज उठी। यह आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उसने लगभग कूदकर बिस्तर से बाहर आना पड़ा। उसने दीवार घड़ी की ओर देखा—रात के 3 बजकर 7 मिनट। “ इतनी रात को कौन हो सकता है ?” उसने खुद से कहा। उसकी आवाज़ में डर और उलझन दोनों झलक रहे थे। वह दरवाजे की ओर बढ़ी , लेकिन उसे महसूस हुआ कि उसके अंदर एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया है। जैसे सबकुछ अचानक से रुक गया हो। दरवाजे के पास पहुंचकर उसने धीमे से झांका। बाहर घुप अंधेरा था। हवा में हल्की सी सरसराहट थी। लेकिन कोई भी नजर नहीं आया। उसने दरवाजा खोलने की हिम्मत नहीं की। “ शायद कोई शरारत कर रहा है ,” उसने खुद को तसल्ली दी और वापस मुड़ी। लेकिन तभी डोरबेल फिर से बजी। इस बार उसकी आवाज़ पहले से भी तेज़ थी। अदिति का डर अब बढ़ने लगा। उसने दरवाजा खोलने का फैसला किया। झिझकते हुए उसने लॉक खोला और हल्के से दरवाजा खोला। बाहर कोई नहीं था। उसने चारों ओर देखा , लेकिन सड़क खाली थी। हवा में एक अजीब सी खामोशी थी। तभी उसकी नजर फर्श पर पड़ी। एक कागज का टुकड़ा दरवाजे के पास पड़ा था। उसने कागज को उठाया। उस पर लिखा था—"तुमसे मिलने का समय आ गया है।" अदिति के हाथ कांपने लगे। उसका गला सूखने लगा।
उसने कागज को जल्दी से फाड़कर फेंक दिया और दरवाजा बंद कर दिया। अदिति ने दरवाजा बंद करके चैन की सांस लेने की कोशिश की। लेकिन उसकी बेचैनी...