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राजकुमार का पिता
*राज कुमार का पिता*
राज कुमार का पिता",पढ़ने में शीर्षक थोड़ा अजीब जरूर लगेगा,लेकिन ये"राजकुमार का पिता" सभी लड़कियों के जीवन में आता है।कुछ उनके मान के लिए जीवन न्यौछावर कर देती हैं तो, कुछ उनका सम्मान भी नहीं रख पाती हैं।इसे कहानी ज़रूर कह सकते है मगर जीवन में उतार कर हम अपना जीवन सहज, सरल और सुखद बना सकते है।आशा है कि आप सभी को पसंद आए..!

*राज कुमार का पिता*

कुछ नहीं था बरखा देवी के पास कक्षा 10 पढ़ते हुए ही उनकी शादी सेठ रूपचंद के बेटे अजय से कर दी गई ,व्यापार में कई उतार चढ़ाव देख कर भी बरखा देवी ने हिम्मत नहीं हारी और अपने गांव के आस पास ही लगभग पाँच छोटी बड़ी फैक्ट्री खोल कर पूरे गांव के बेरोजगारों को रोजगार दे कर गांव वालों को सुखद आराम दायक जीवन शैली दी।सुना है कि, आज राष्ट्रीय टीवी पर उनका इंटरव्यू है और मुख्यमंत्री जी उनका सम्मान करने आ रहे हैं..!हवेली के बाहर पूरे गांव में यह चर्चा हो रही थी।

वहीं हवेली के अंदर भी मेहमानो का तांता लगा हुआ था। बड़ी सी दावत भी हो रही थी, सभी लोग बरखा देवी को घेरे हुए थे और उनके संघर्ष की कहानी सुन रहे थे।
दूसरे दिन पूरे गांव में बहुत बड़ा जलसा रखा गया, आस पास के सभी लोगो को आमंत्रित किया गया।बरखा देवी को मुख्य मंत्री ने सम्मानित भी किया तभी उनसे पत्रकार वार्ता भी हुई जिसका बरखा देवी ने बहुत मर्यादित हो शालीनता से जवाब दिया....!
पत्रकार _"सुना है आपने अपने ससुर श्री रूपचंद सेठ जी का व्यापार बहुत अच्छे से संभाला..!उनके बेटे लायक नहीं थे या हिस्सा देने के भय से आपने सभी को साथ नही किया"..?
पत्रकार के सवाल चुभ रहे थे मगर फिर भी बरखा देवी ने बड़ी मधुर भाषा में कहा....
"मेरा विवाह अल्प आयु में ही अजय जी से हो गया था,वो बहुत लायक और काबिल इंसान हैं,पिताजी को उनके सभी बेटे समान रूप से प्रिय थे,मगर पिताजी मुझे चहेते थे। अपने सभी बेटों को उन्होंने समय से ही वसीयत कर विरासत का बंटवारा कर दिया था । सभी बेटे बड़े शहरों में बस गए।पिताजी की वृद्धा वस्था के कारण साथ नही लेजा सके और मैं स्वयं भी यही चाहती थी कि, मुझे पिताजी की सेवा का सुअवसर मिले"।
पत्रकार_"मगर अतीत में आप बड़े कर्जे में डूबे थे सुना था कि, आपके पास दो वक्त की रोटी का भी प्रबंध नहीं था..,फिर किस तरह आपने ये मुकाम हासिल किया"..?
बरखा देवी _"बिलकुल सही है ये..!लेकिन अपना बचपन मैंने दादी नानी के साथ बिताया था।वे कहती थीं कि राजकुमार आएगा मुझे ले जायेगा और रानी बना कर रखेगा"...!
"जब विवाह हुआ तो अजय जी मेरे लिए राजकुमार ही थे..जैसा सभी लड़कियां अपने पति को समझती हैं।लेकिन मेरे सास ससुर को मैने महाराजा और महारानी ही समझा था।जब बुरा समय आया तो सभी छोड़ गए थे,पिता जी ने मुझे भी जाने को कह दिया था लेकिन ,मुझे विश्वास था कि व्यापार में हानि हुई हैं ।पिताजी की व्यापारिक नीतियों और उनके हुनर में कोई घाटा नहीं हुआ,तब मैंने अपने सारे गहने पिताजी के चरणों में रख कर उनसे विनती करते हुए कई सकारात्मक बाते बताई और व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए अनुरोध किया"..!
पत्रकार _"और इन सब में आपके पति कहां पर थे,क्या वो भी आपको छोड़ गए थे..?
बरखा देवी _"वो मेरे साथ ही थे।जब मैं व्यापार की बारीकी सीख रही थी तब वो बच्चो का और रूपये पैसों लेन देन का ध्यान रख रहे थे"।
"अपने ससुर जी को मैंने सदा महाराजा ही जाना और मेरे मत से राजा महल में रहे या कुटिया में वो राजा ही होता हैं।इस लिए विकट परिस्थितियों में भी मैने उन्हें नहीं छोड़ा ।
आज आसमान को छूता यह व्यापार उन्हीं के आशीष से है " ।
थोडी देर रुक अपने आंसू पोछतें हुए वह बोली_"सभी लोग गलत नहीं होते।अगर आप पति को राजकुमार समझती हो तो सास ससुर को राजा रानी क्यों नहीं..?बिना राजा के तुम्हारा पति राजकुमार कैसे हो गया"।
" विरासत में धन माया मिल जायेगी,मगर उसे कैसे संचित करें ये तो वो स्वयं ही सिखाएंगे ।सभी बेटियों से मेरा अनुरोध है कि अगर सास ससुर से कोई समस्या हो तो उन्हें ही पूछे, उन्हें नीचा नहीं दिखाएं, उनका सम्मान करें।"
याद रहे ईश्वर भी उनके पैर छूता है जो उनको जन्म देता है।
मंच से उतर कर बरखा देवी ससुर के फोटो के पास गई और प्रणाम किया।
तालियों के शोर के साथ बरखा देवी की भूरी भूरी प्रशंसा हुई।

बहुत आसान होता हैं पति के अंदर एक राजकुमार को देखना मगर,जिन माता पिता के कारण वो राजकुमार है क्या उन्हें राजा रानी की जगह दे पाते है..!
सच अगर बरखा देवी की तरह सब की सोच हो तो स्वर्ग आपके लिए धरती पर ही होगा।
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