एक लोटा पनी ......
अंधेरी रात थी। चारो तरफ कुत्ते भौंक रहे थे । माला का सारा शरीर थर - थर काँप रही थी। माला फिर भी भागी जा रही थी । भागते - भागते माला का पैर अचानक एक पत्थर से टकरा जाती है, और वो गिर पड़ती है ।
माला रोते हुऐ - गुरुदेव । कहां हैं आप। मेरा एक भाई बिहारी जिसने तुझे यहां लाकर स्थापित की। तूने उसे मुझ से दूर कर दिया । अब मुझे लगा कि तूने मेरे लिए एक भाई भेजा है। जो तुझे अपना गुरु कहता है, तू उसे भी हम से छीन लेना चाहता है। कहते है की कलयुग में मनुष्य ह्रदय हीन होते है पर हमें तो आज लग रहा है की तुम भी ह्रदय हीन हो। जब खुद भगवान इतना निर्दयी हो सकता है तो मानव जाति को क्या कहना।
माला पूरे रात वहीं पड़ी रहती है । सुबह होते ही अचानक नींद खुलती तो देखती है की वो बाबा भोले के शिवलिंग के पास सोई हुई है, ये देखते ही उसके आंखों में डबा - डब आंसू भर आते है वहीं बैठी माला खूब सिसक - सिसक रोती है ।
इधर माला की दादी ( रूपा ) जागती है और माला को पुकारती है,- - माला अरे ओ माला । घर के सारे चौंका - बर्तन हो गया - - - हाय रे मेरी कमर टूट गई । ठाकुर के घर काम पे भी जाना है।
चिल्लाते हुए बोली , '' तेरी शादी के खर्चे के पैसे भी तो मांगना है। जरा जाकर पानी तो लेआती । अगर नहीं गई काम पे तो वो पैसे नहीं देगा । अरे माला कहां मर गई ।
तब तक माला वहां भागी - भागी आई ।
रूपा बोली , '' गुसाते हुए बोली , '' अरे ओ माला कहां मर गई थी। घर का सारा काम पड़ा है । ठाकुर के हवेली भी जाना है । तुझे कछु खबर भी है की कितना धूप निकल आया है । अगर काम पर नहीं गई तो तेरे व्याह के पैसे कैसे मिलेंगे । चल जा। जाकर पानी ले आ। घर के सारे काम पूरा कर फिर शिवलिंग के दर्शन कर आना । चल जा अब ।
माला वहीं खड़ी चुप - चाप अपनी दादी के तरफ घूंरे जा रही थी। उसके आंखों में आसूं भरे थे। पूरे रात रोने के कारण उसके आंखे सूज गई थी ।
रूपा बोली , '' क्या हुआ बिटिया रो क्यों रही हो रे ।
माला बोली , '' किसी के जाकर गांव के मुखिया को रामराज के बारे बता दिया । की वो मेरी शादी में आने बाला है । अब पूरे गांव को पता चल चुका है । मुखिया ने जा कर थाने में में रपट लिखवा दी है।
रूपा बोली , '' ये उस तेलिया महुआ का काम होगा वही ह्रमजदा मुखिया का अंगूरलगा है। वो उसे इसी काम का तो पैसे देता है।
रूपा बोली , '' रामराज कहां रहता है तुझे कुछ पता है
माला सर न में हिलाती है।
चल छोड़ चुप हो जा अगल - बगल सब घुसखोर लोग सारे बातें सुनते रहते है और जाकर मुखिया को बताते है।
मुखिया ( मान सिंह) रूपा के झोपड़ी में आकर बोलता है - अरे...
माला रोते हुऐ - गुरुदेव । कहां हैं आप। मेरा एक भाई बिहारी जिसने तुझे यहां लाकर स्थापित की। तूने उसे मुझ से दूर कर दिया । अब मुझे लगा कि तूने मेरे लिए एक भाई भेजा है। जो तुझे अपना गुरु कहता है, तू उसे भी हम से छीन लेना चाहता है। कहते है की कलयुग में मनुष्य ह्रदय हीन होते है पर हमें तो आज लग रहा है की तुम भी ह्रदय हीन हो। जब खुद भगवान इतना निर्दयी हो सकता है तो मानव जाति को क्या कहना।
माला पूरे रात वहीं पड़ी रहती है । सुबह होते ही अचानक नींद खुलती तो देखती है की वो बाबा भोले के शिवलिंग के पास सोई हुई है, ये देखते ही उसके आंखों में डबा - डब आंसू भर आते है वहीं बैठी माला खूब सिसक - सिसक रोती है ।
इधर माला की दादी ( रूपा ) जागती है और माला को पुकारती है,- - माला अरे ओ माला । घर के सारे चौंका - बर्तन हो गया - - - हाय रे मेरी कमर टूट गई । ठाकुर के घर काम पे भी जाना है।
चिल्लाते हुए बोली , '' तेरी शादी के खर्चे के पैसे भी तो मांगना है। जरा जाकर पानी तो लेआती । अगर नहीं गई काम पे तो वो पैसे नहीं देगा । अरे माला कहां मर गई ।
तब तक माला वहां भागी - भागी आई ।
रूपा बोली , '' गुसाते हुए बोली , '' अरे ओ माला कहां मर गई थी। घर का सारा काम पड़ा है । ठाकुर के हवेली भी जाना है । तुझे कछु खबर भी है की कितना धूप निकल आया है । अगर काम पर नहीं गई तो तेरे व्याह के पैसे कैसे मिलेंगे । चल जा। जाकर पानी ले आ। घर के सारे काम पूरा कर फिर शिवलिंग के दर्शन कर आना । चल जा अब ।
माला वहीं खड़ी चुप - चाप अपनी दादी के तरफ घूंरे जा रही थी। उसके आंखों में आसूं भरे थे। पूरे रात रोने के कारण उसके आंखे सूज गई थी ।
रूपा बोली , '' क्या हुआ बिटिया रो क्यों रही हो रे ।
माला बोली , '' किसी के जाकर गांव के मुखिया को रामराज के बारे बता दिया । की वो मेरी शादी में आने बाला है । अब पूरे गांव को पता चल चुका है । मुखिया ने जा कर थाने में में रपट लिखवा दी है।
रूपा बोली , '' ये उस तेलिया महुआ का काम होगा वही ह्रमजदा मुखिया का अंगूरलगा है। वो उसे इसी काम का तो पैसे देता है।
रूपा बोली , '' रामराज कहां रहता है तुझे कुछ पता है
माला सर न में हिलाती है।
चल छोड़ चुप हो जा अगल - बगल सब घुसखोर लोग सारे बातें सुनते रहते है और जाकर मुखिया को बताते है।
मुखिया ( मान सिंह) रूपा के झोपड़ी में आकर बोलता है - अरे...