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भगवान नर - नारायण की वंदना
महर्षि मार्कण्डेय जी कहते हैं - भगवन ! आप अंतर्यामी , सर्वव्यापक , सर्वस्वरूप , जगतगुरु , परमाराध्य और शुद्धस्वरूप से विद्यमान है , जो आपके स्वरूप का रहस्य प्रकट करता है । ब्रह्मा आदि बड़े बड़े प्रभावशाली महर्षि उसे प्राप्त करने का यत्न करते रहने पर भी मोह में पड़ जाते हैं । आप भी ऐसे लीलाविहारी हैं की विभिन्न मतवाले आपके संबंध में जैसा सोचते विचारते हैं , वैसा ही शील स्वभाव और रूप ग्रहण करके आप उनके समान प्रकट हो जाते हैं । वास्तव में आप देह आदि समस्त उपाधियोमें छिपे हुए विशुद्ध विज्ञानपन है । हे पुरुषोत्तम ! मैं आपकी वंदना करता हूं । अखिल ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी जड़ चेतन है , वह समस्त ईश्वर से प्राप्त है । उस ईश्वर को साथ रखते हुए त्यागपूर्वक इसे भोगते रहो। इसमें आसक्त मत होओ, क्योंकि धन - भोग पदार्थ किसका है अर्थात किसीका भी नही है ।
हे प्रभु आप दोनो पुरुषों में श्रेष्ठ हैं मैं आपको प्रणाम करता हूं ।
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