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लघु नाटक :- एक नया साथी
शेखर :- एक बड़े से सरकारी अस्पताल का जाना माना चिकित्सक।
रागिनी :- दो महीने पहले शेखर को समुन्द्र किनारे मिली एक अनजान युवती।
अर्पित :- रागिनी का पति जो उससे विवाह करके उसको अपने साथ नए शहर में लाता है और फिर उसको एक दिन अकेले समन्दर किनारे छोड़ जाता है।
प्रेरणा :- रागिनी की देख भाल करने वाली नर्स।

समय :- अर्ध रात्रि, अस्पताल के सभी मरीज़ सोये हुए हैं। कुछ कर्मचारी हैं जो अपने अपने काम में व्यस्त हैं।

रागिनी :- (ज़रा ज़रा होश में आते हुए कुछ बड़बड़ाती है।) अर्पित! अर्पित! अर्पित!

प्रेरणा :- (कमरे के दरवाजे से डॉक्टर को आवाज लगाती है।) सर! सर! नौ नंबर के मरीज़ को होश आ गया है, जल्दी आइए।

रागिनी :- (अपनी आंँखों को धीरे धीरे खोलती है और अपने आस पास के वातावरण को देखकर चकित होते हुए बोलती है।) मैं... मैं कहांँ हूंँ ? तुम कौन हो ? अर्पित कहाँ है ?

प्रेरणा :- मैम आप आराम करिए, आपकी तबियत अभी ठीक नहीं है। डरिए नहीं आप अस्पताल में हैं। मैं आपकी नर्स हूंँ।

रागिनी :- अस्पताल! मैं यहांँ कैसे आई ? मैं तो अर्पित के साथ थी, वो कहाँ है ? (रागिनी चिंतित होते हुए बोली।)

प्रेरणा :- सब्र से काम लीजिए मैम। आप आराम कीजिए। दो महीने पहले आप डॉ शेखर को बेहोशी की हालत में समुन्द्र के किनारे मिली थी।

(डॉ शेखर चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लिए हुए कमरे में प्रवेश करते हैं।)

प्रेरणा :- ( शेखर को देखकर रागिनी से दूर होते हुए।) लो आ गये डॉ सर।

रागिनी शेखर से :- अर्पित कहाँ है ? मुझे उसके पास जाना है। उसको बुलाओ, मुझे उससे बात करनी है।

शेखर उसकी बातों को अनसुना करते हुए उसका चेकअप करने लगता है।

शेखर :- (मुस्कुराते हुए रागिनी से बोलता है।) आप अभी आराम कीजिए। हम सुबह बात करेंगे।
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