...

7 views

संभोग साधना विफल होकर सिर्फ यौन साधाना क्यों रह जाती हैं।
क्योंकि पुरुष और महिला दोनों ही संभोग साधना में बताएंगे बलिदान जैसे उत्सुकता -धयरशीलता , उतेजना -स्परष जिस्म -रूह आत्म समर्पण , वसना भोग को प्रेम भोग ,सोने को समर्पण करने में असफल होते हैं इसलिए संभोग साधना काभी पूर्ण नहीं हो सकती है क्योंकि संभोग साधना तपस्या ही प्रेम गाथा अनन्त को पूरा करती हैं जो कि कलियुग में सम्भव नहीं है।। इसलिए यह केवल एक योनि और चूत संकल्प साधना है।। पूर्ण समर्पित होकर सोना ही सम्भोग साधना का पूर्ण होना कहलाता है।। और तभी दुनिया में संभोग शब्द की उत्पत्ति होती वरना यौन संबंध तो सब बनाते हैं तो वो यौन संबंध साधना ही कहलाएगी ना की संभोग साधना बोली जाएगी।। संभोग साधना समर्पण तथा यौन-संबंध साधना बैकर समर्पित होकर एक दूसरे सो कर भी की जा सकती है बस वो प्रेम ना होकर जिस्म की हवस वासना भोग की साधना कहलाएगी।।
इसलिए कोई मनुष्य और स्त्री भोग लगाना से या कोई भी साधना में लीन हो ने पहले समझ ले उन्हें कौन सी साधना में लीन और समर्पित होना है।।
क्योंकि संभोग तपस्या की प्रेम गाथा मांगती तथा यौन-संबंध साधना वसाना वर्जित भोग लगाया जाना स्वीकार करती हैं।।
#सभोग समर्पित ।।
#वसना यौन-संबंध समर्पित।।