जिंदगी.... भाग -१
मेरे लिए जिंदगी का मतलब थोड़ी सी खुशी और बहुत सारा गम,
ये कभी लाल मिर्च वाला लाल नमक तो कभी बहुत तीखी सब्जी की तरह है जिसमें सब्जी का स्वाद कहीं गायब हो जाता है, कभी कभी ये वैसी हो जाती है जैसे किसी को रसगुल्ला खिला दो और उसको पानी ना दो, और वो भी उसे जिसे मीठा पसंद ना हो।
वैसे मैं मीठा तीखा और नमकीन उतना ही खाती हूं जिसको खाने के बाद पानी पीना ना पड़े या फिर ये तीनों भरपेट तभी खाती हूं जब मुझे बहुत सारा पानी पीना होता है या जब लगता है कि मुझे, मेरे शरीर को पानी की आवश्यकता है।
तो हां हम जिंदगी की बात कर रहे थे तो जिंदगी का मतलब हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है लेकिन इसका सच यही है कि यदि तुममें सहनशक्ति है, यदि तुममें मौन है, यदि तुम्हारा अंतर्मन दृढ़ है तो तुम्हारा जीवन सुखमय अवश्य है किन्तु उतना भी नहीं जितना तुम सन्तुष्ट दिख रहे होगे क्योंकि तब तुम कहीं ना कहीं अपनी जिम्मेदारियों से बच रहे होगे...
जैसे एक घर में यदि बच्चा शैतानी कर रहा है तो पहली बात है कि बड़ों का ये कर्तव्य है कि उसे बताएं, समझाएं कि क्या सही है और क्या गलत तो दरवाजे पर बैठा बाबा,दादी, चाचा या कोई अन्य उसको समझा रहा है और तेज़ आवाज़ में बोल दिया तो उसके मां बाप नाराज़ हो सकते हैं और यदि वो देख रहे हैं और कुछ नहीं बोलते हैं तो भी वही गलत हैं, जबकि वो अपने स्वभाववश शान्त हैं।
जिन्दगी में बहुत कुछ कड़वा भी है,हम जितना आसान समझते हैं उतना होता नहीं है....
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शेष अगले भाग में....
© आकांक्षा मगन "सरस्वती"
ये कभी लाल मिर्च वाला लाल नमक तो कभी बहुत तीखी सब्जी की तरह है जिसमें सब्जी का स्वाद कहीं गायब हो जाता है, कभी कभी ये वैसी हो जाती है जैसे किसी को रसगुल्ला खिला दो और उसको पानी ना दो, और वो भी उसे जिसे मीठा पसंद ना हो।
वैसे मैं मीठा तीखा और नमकीन उतना ही खाती हूं जिसको खाने के बाद पानी पीना ना पड़े या फिर ये तीनों भरपेट तभी खाती हूं जब मुझे बहुत सारा पानी पीना होता है या जब लगता है कि मुझे, मेरे शरीर को पानी की आवश्यकता है।
तो हां हम जिंदगी की बात कर रहे थे तो जिंदगी का मतलब हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है लेकिन इसका सच यही है कि यदि तुममें सहनशक्ति है, यदि तुममें मौन है, यदि तुम्हारा अंतर्मन दृढ़ है तो तुम्हारा जीवन सुखमय अवश्य है किन्तु उतना भी नहीं जितना तुम सन्तुष्ट दिख रहे होगे क्योंकि तब तुम कहीं ना कहीं अपनी जिम्मेदारियों से बच रहे होगे...
जैसे एक घर में यदि बच्चा शैतानी कर रहा है तो पहली बात है कि बड़ों का ये कर्तव्य है कि उसे बताएं, समझाएं कि क्या सही है और क्या गलत तो दरवाजे पर बैठा बाबा,दादी, चाचा या कोई अन्य उसको समझा रहा है और तेज़ आवाज़ में बोल दिया तो उसके मां बाप नाराज़ हो सकते हैं और यदि वो देख रहे हैं और कुछ नहीं बोलते हैं तो भी वही गलत हैं, जबकि वो अपने स्वभाववश शान्त हैं।
जिन्दगी में बहुत कुछ कड़वा भी है,हम जितना आसान समझते हैं उतना होता नहीं है....
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शेष अगले भाग में....
© आकांक्षा मगन "सरस्वती"