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प्रेम निष्ठा (अंश-2)
सवाल शुरू हुए तो मानो ख़त्म ही न हुए। कभी प्रेम, तो कभी मै, अपनी बातो में गुम थे । आस पास सभी हमें देखते और हम नज़रे घुमाये उन्हें अनदेखा कर देते। बस कुछ देर में अर्श और निशा भी आये, तो देखा जैसे, वहाँ कोई दो अनजान लोग न बैठे हो, बल्कि बहुत पुराने दोस्त बैठे हो। अर्श और निशा थोड़ी देर तो चुप बैठे रहे, मगर फिर खुद को रोक न पाये। बाते कुछ ऐसे शुरु हुई जैसे बहुत पुराने दोस्त आज मिल गए हो। बाते शुरू तो हुई थी, शहर की कहानिओ से, मगर अब वो एक दुसरे के बारे में जानने पर आ गयी थी। पहले तो हम दोनों ये बात कर रहे थे, की अपने-अपने शहर की क्या-क्या खूबी है। मगर फिर ये जाना की,जगह कोई भी हो लोग एक जैसे ही है। वही घर में बड़ो की डाट,भाई बहन के साथ शरारत और न जाने क्या-क्या। अब बात आपसी प्रश्नो पर आई, तो शुरुआत मुझसे हुई, मेने अब प्रेम से कुछ न पूछते हुए अर्श से पूछा की तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है। उसने कहा बस मै, मेरी बहन और मम्मी-पापा। अब प्रेम ने भी, मुझे चिढ़ाने के लिए निशा से पूछा, तुम पढ़ाई कर रही हो या जॉब, निशा ने जवाब दिया, दोनों।प्रेम ने कहा वाह! अच्छी बात है। सभी मन में अच्छे से समझ रहे थे, ये क्या हो रहा था।मगर किसी ने कुछ कहा नहीं, बस कुछ देर सब मानो शांत हो गये। क्योकि बहुत देर से प्रेम और निष्ठा ही बातों से समां बांधे हुए थे और अब वो शांत थे। फिर निशा ने कहा चलो अर्श अब हम बातें कर सकते है...