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रिश्तों का महत्व
रिश्ते क्या होते हैं? एक तो जन्म से जुड़े होते जिन्हें हम बदल नहीं सकते।और कुछ हम अपनी मर्जी से बनाते हैं। और एक रिश्ता ऐसा है जो शादी के बाद बनता है,और उसमे दो परिवारों का आदर सम्मान करना , और उसमे मर्यादा का पालन करना बहुत जरूरी है।
कहते हैं कि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने के लिए एक दूसरे से अपेक्षाएं नहीं होनी चाहिए। ये हम सब जानते है पर फिर भी हम उम्मीद रख ही लेते हैं कि समय पड़ने पर वह मेरी मदद करेगा और जब ऐसा नहीं होता तो कहीं न कहीं दरार आ जाती है।
मेरा मानना है कि हर रिश्ते कि एक अहमियत होती है और वो अपनी जगह रहे वहीं ठीक है।
जैसे हम कहते तो है कि ये मेरी बहू नहीं बेटी जैसी है, लेकिन "जैसी" शब्द तों लगा है ना,
अगर बहू सास या ससुर को दवायी न लेने पर या परहेज न करने पर बोलती है या मना ‌करती है तो ‌उनको बुरा लगता है। लेकिन यही बात बेटी कहे तो बुरा नहीं लगता ये उसका प्यार होता है ,ऐसा क्यों ?बात तो दोनों ही उनकी भलाई की कर रही है न फिर ऐसा क्यों ? बेटी अच्छी बहू बुरी है।
वो इसलिए कि बहू अगर बेटी बन कर डांटती या बोलती है तो बुरा लगता है लेकिन वही अगर बहू अपनी मर्यादा में रहकर बोले तब बुरा नहीं लगता है।
इसलिए हर रिश्ते कि जो जगह है उसका पालन करने से आदर सम्मान और प्यार बना रहता है। जैसे बेटी मम्मी को बोल दे कि क्या मम्मी मैं ये काम नहीं करुंगी आप ही करो मैं थक गई हूं मां बोलेगी ठीक है बेटा जाओ आराम करो।
अब यही बात बेटी समान बहू बोल दे तब क्या होगा? कैसी है सास को जवाब देती हैं बेटी तक खबर जाएगी, फिर बेटी भाई से शिकायत करेगी ।अब क्या होगा भाई, बेटा और पति हम सब के बीच में फसेगा कि किसका साथ दे। पत्नी का दिया तो जोरु का गुलाम कहलाता है। नहीं दिया तो पत्नी नाराज।
इसलिए बहू को बहू की मर्यादा में ही रहना चाहिए बेटी बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।सास ससुर को मां बाप बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए । जो जिस पद पर है वह सम्माननीय है उन्हें वह सम्मान मिलना चाहिए। उसके लिए जरूरी है कि हमें जो रिश्ता जिस रुप में मिला है उसे उसी रुप में स्वीकार कर उसका सम्मान करना चाहिए।
आप की क्या राय है???
ज्योति मोहन ।