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परेतकाल बिसाचकाल और डायनकाल।। भाग 1
जैसा कि हम सब जानते हैं कि श्रृष्टि पुजाओ को लेकर अपनी अपनी मानता है ।। और दुनिया में धर्म
अनेक है मगर योनि एक की है । और योनि होती वो बहुत पवित्र होती जिसका संकल्प एक मनु उत्पत्ति मगर हर योनि गाय की यह जरूरी नहीं है।। क्योंकि कुछ योनि सुवरी जात में जाती जिनके भोग श्राप कहा गया क्योंकि वो योनि काभी पवित्र नहीं हो सकती हैं जो रूह मजदूर नहीं जिस्म का प्रयोग कर आदमी को गुलाम बनाने सुरू करती ऐसी स्त्री की को तुझ मानकर इनकी योनि के वीर्य बूंद को श्रृष्टि के नाष का कारण बताया गया है।। इन स्त्री के योनि प्राप्त वीर्य को आदम जात के शरीर का मल-मूत्र कहकर हसतपसेद कराकर एक असम्भव प्रेम गाथा को इंतजार है एक गाऊ है वीर्य की और उस योनि की जो विचारकाल का अन्त कर और एक योनि की हो जो विचारकाल से गृहसत ना अपनी योनि का योगदान देकर एक प्रेम रस भोग वीर्य प्रदान कर एक असंभव प्रेम गाथा को पूर्ण कर पाए।। योनि के वीर्य से आए उन तीनों का परिचय और चरित्र -परेतकाल, बिसाचकाल और दैवीकाल डायनकाल का परिचय और चरित्र एक योनि द्वारा प्राप्त हुआ है।।
#प्रेम योनि के वीर्य भोग की तलाश।
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