इश्क़ मे बहके
इनकार भी नहीं,
इकरार भी नहीं
इश्क़ मे बहके बीमार हो क्या?
रोज सुबह ख्यालो मे आते हो
अखबार का कोई इस्तेहार हो क्या??
सुनो तुम्हे सोचके सुकून
क्यों मिलता है
दिल के पहरेदार हो क्या?
जज्बात बिखर जाते है तुमसे बात करने से क्युं तुम जज्बात के बाजार हो क्या??
© Akash dey
इकरार भी नहीं
इश्क़ मे बहके बीमार हो क्या?
रोज सुबह ख्यालो मे आते हो
अखबार का कोई इस्तेहार हो क्या??
सुनो तुम्हे सोचके सुकून
क्यों मिलता है
दिल के पहरेदार हो क्या?
जज्बात बिखर जाते है तुमसे बात करने से क्युं तुम जज्बात के बाजार हो क्या??
© Akash dey