...

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मुलाकात
एक आखिरी मुलाकात..
रोज की तरह मैं चाय की टपरी पर पहुंचा और अपनी पुरानी स्प्लेंडर पर बैठा - बैठा चाय के लिए बोला ही था कि पीछे से आवाज आई.."अक्षय",
आवाज जानी-पहचानी सी लगी,आश्चर्य से मैंने पीछे मुड़कर देखा तो अचानक ग्लास हाथ से छूट गया, मैं 7साल पीछे की दुनियां में खो गया, होश संभालते हुए देखा कि एक खूबसूरत महिला अपनी कीमती गाड़ी से कुछ दूर खड़ी, गाड़ी से अपने बेटे को बुला रही है जिसका नाम भी अक्षय था , अब मेरे मन में हजारों सवाल दौड़ने लगे मैं असमंज में था कि उससे बात करूं या नहीं, मैं इस उधेडबुन में उलझ रहा था तभी फिर से आवाज़ आई.. "अरे अक्षय, तुम यहां"
इस बार यह मेरे लिए थी, मैंने भी अपने आप को संभालते हुए कहा "हां, यहां चाय पीने आता हूं... और तुम?नहीं आप?"मैं सकपकाते हुए बोला,
"मैं यहां पास के मंदिर में आई हूं "
उसे बोलता देख मैं फिर कहीं खो गया, उसने कहा"और क्या कर रहे हो आजकल?"
मैं -"वही, पढ़ना और पढ़ाना"
वो हंसकर बोली-"अरे !अभी भी पढ़ रहे हो, कब तक पढ़ोगे?"
मैंने कहा -"जब तक पढ़ सकता हूं , आखिर किताबें ही तो है मेरा सहारा"
अब वह अतीत में लौटने लगी, जिसका मुझे आभास हो रहा था।
उसकी नज़र मेरी बाइक पर पड़ी तो आश्चर्य से पूछा"अरे!बाईक तो दूसरी ले लेते कंजूस"
मैंने कहा -नहीं, इससे मेरी यादें जुड़ी है
"ओह!" इतना कहकर उसने अपनी आंखों की नमी पोंछा और अपने आप को संभालते हुए बोली -"घर पर सब बढ़िया?"
मैंने हां में सर हिलाया
वो फिर पूछ बैठी -शादी?
मैंने कहा -नहीं
अब उसका अगला सवाल"क्यों"था शायद, लेकिन इसका कारण भी उसे जल्दी समझ आ गया तो उसने बात बदलते हुए कहा -"अच्छा, मुझे देर हो रही है, चलती हूं,खयाल रखना अपना"
अब मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उसे दोबारा मिलने का पूछ लूं, मैं मन ही मन फुसफुसा रहा था कि वह बोली -"कोई मतलब नहीं है, अक्षय"
शायद वो मेरी मंशा समझ गई थी, मैं ख़ामोश था
उसने अपने बेटे को मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने को कहा और मेरी तरफ मुड़कर बोली -"जो कुछ हुआ उसके लिए न तो तुम जिम्मेदार हो और न ही मैं बस किस्मत को हमारा मिलना मंज़ूर नहीं था, मैं बस इतना ही कहूंगी कि इस बाइक को बेच दो और अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर लो"
मैं कुछ बोलता इससे पहले उसने बात खत्म करते हुए कहा -"मैं बहुत खुश हूं, तुम भी जिम्मेदार बनो और खुश रहो"
इतना कहकर वो झट से मंदिर की सीढ़ियां चढ़ गई
मैं अब भी उसे देखे जा रहा था और सोच रहा था कि 7साल बाद मिली वो राधिका, जो किसी की नहीं सुनती थी, वो इतनी समझदार कैसे हो गई?
खैर! सालों बाद ही सही एक मुलाकात तो हुई, ये सोचकर मैं घंटों वहां बैठा रहा और आज भी रोज उसी समय, उसी स्प्लेंडर से वहां चाय पीने के बहाने जाता हूं और सोचता हूं कि काश! एक मुलाकात और...
ये थी मेरी छोटी सी एक मुलाकात
© Naren07