सफ़रनामा- हम चले गधों के बीच…
हम चलें गधों के बीच…
सुनने में ही बड़ा अजीब सा लगता है जब शेरों के शहर के लोग गधों के गाँव जाते हैं।
घूमना फिरना मेरा काम है, पापी पेट और चश्मा-हेट का खर्चा भी इसी से निकलता है सो बिना किसी ना नुकुर के मुँह उठा कर कहीं भी चल देते हैं …बिलकुल मोदी जी की तरह झोला उठा कर निकल लेंगे टाइप।
उस दिन दसाडा ( गुजरात),थे और टूअर कार्यक्रम में वाइल्ड आस ( घुड़खर) सफ़ारी mentioned था सो सुबह तड़के ही हाथ मुँह धोकर तैयार हो गए , वो बात अलग है कि शेर मुँह नहीं धोते पर यहाँ तो गधे थे सो धो लिया और पहुँच गए होटल रिशेप्सन पर…हमारे पर्यटक वहाँ पहले से ही मोजूद थे सो हम लोग सफ़ारी जीप में टंग कर निकल लिए अपने गंतव्य की ओर….
कुछ दसियों किलोमीटर यूँ ही चलने के बाद हम किसी गाँव से गुजरते हुए वहाँ तक पहुँचे जहाँ गधे बसते …मतलब सपरिवार रहते हैं।
थोड़ी देर रण की नमकीन धरा पर यहाँ वहाँ जीप दौड़ाने के बाद कहीं दूर दरिया किनारे कुछ गधे नज़र आए दखणी बम्बूल ( जूलियाफ्लोरा ) की झाड़ियों के इर्द-गिर्द ….कुछ मटमेले लाल पीले रंग वाले।
पर्यटक उत्सुक थे और हम...
सुनने में ही बड़ा अजीब सा लगता है जब शेरों के शहर के लोग गधों के गाँव जाते हैं।
घूमना फिरना मेरा काम है, पापी पेट और चश्मा-हेट का खर्चा भी इसी से निकलता है सो बिना किसी ना नुकुर के मुँह उठा कर कहीं भी चल देते हैं …बिलकुल मोदी जी की तरह झोला उठा कर निकल लेंगे टाइप।
उस दिन दसाडा ( गुजरात),थे और टूअर कार्यक्रम में वाइल्ड आस ( घुड़खर) सफ़ारी mentioned था सो सुबह तड़के ही हाथ मुँह धोकर तैयार हो गए , वो बात अलग है कि शेर मुँह नहीं धोते पर यहाँ तो गधे थे सो धो लिया और पहुँच गए होटल रिशेप्सन पर…हमारे पर्यटक वहाँ पहले से ही मोजूद थे सो हम लोग सफ़ारी जीप में टंग कर निकल लिए अपने गंतव्य की ओर….
कुछ दसियों किलोमीटर यूँ ही चलने के बाद हम किसी गाँव से गुजरते हुए वहाँ तक पहुँचे जहाँ गधे बसते …मतलब सपरिवार रहते हैं।
थोड़ी देर रण की नमकीन धरा पर यहाँ वहाँ जीप दौड़ाने के बाद कहीं दूर दरिया किनारे कुछ गधे नज़र आए दखणी बम्बूल ( जूलियाफ्लोरा ) की झाड़ियों के इर्द-गिर्द ….कुछ मटमेले लाल पीले रंग वाले।
पर्यटक उत्सुक थे और हम...