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दो काॅल गर्ल
ठीक 5 बजकर 20 मिनट हुए । गार्ड ने गाड़ी को हरी झड़ी दिखा दी। गाड़ी ने रेंगना शुरू किया और देखते ही देखते रफतार पकड़ ली। अब वो पूराना जमाना न था कि गाड़ी को चलने के लिए स्टेशन मे किसी घंटी या गाडी के भोंपू की आवश्यकता थी। वैसे भी तो यह दुरंतो एक्सप्रेस थी और स्टेशन भी देश के बड़े शहर मुंबई का बड़ा सी. एस. एम. टी रेलवे स्टेशन । गाड़ी के चलते ही उन दोनों लडकियो ने चैन की साँस ली ।
दोनों बर्थ पर चुप चाप बैठी थी । ऐसा लगता था कुछ सोच रही हो । मैथिली का कुछ बोलने का मूड न था और जूली दोनों के अतीत के बारे मे सोच रही थी । उसकी आँखों के सामने पिछले दस साल घूमने लगे और दिमाग भी उन्ही के बारे सोचने लगा । आज ही के दिन वो दोनों जो एक ही स्कूल के एक ही कक्षा की छात्रा थी छोटे से शहर रायपुर से निकल पड़ी थी फर्क सिर्फ इतना था तब वो एक साधारण गाड़ी थी और सफर किसी साधारण क्लास का । दोनों मे कुछ बनने की चाहत और गरीबी के चक्रव्यूह से निकलने का जुनून । अपनी मजबूरियो को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाने की उन्होंने ठानी थी और उसके लिए साहस जुटाया था। मैथिली के पिता का देहांत हो गया था । वो छोटी थी लेकिन शायद तीन उससे भी छोटे बहन भाईयों की जिम्मेदारी ने उसे बहुत बड़ा बना दिया था। अनपढ़ माँ ने दूसरे घरों में बर्तन सफाई का काम पकड़ लिया...