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सेफ हाऊस
गली मे सुबह से बहुत शोर शराबा सुना जा सकता था, कुछ लोग गली के कुत्तों को भगा भगा कर पकड़ रहे थे। शायद कोई अपने पालतु को पकड़ रहा होगा यही सब सोच कर हमने इसे अनदेखा कर दिया।
दोपहर को किसी ने डोर बैल बजाई तो पता चला एक आदमी जिसकी टांग लहूलूहान हो रही थी बोला कि उसे आप सब गली के लोग पैसे दो ताकी वो अपना इलाज करा सके।
“भाई किस बात के पैसे और कौन हो तुम? मैने डांटते हुए पूछ लिया।
वो पूरे हक़ अधिकार से बोला
“ जी मुझे इस गली के लोगों ने बोला था की यहां के कुत्ते पकड़ कर बाहर छोड़ आऊं”
तो जिसने कहा था उससे मांग ना हम तो कभी नही कहते की कुत्तों को मारो पीटो, भाई वे भी हमारी तरह जीव है उन्हे भी अधिकार है यंहा रहने का”
मेरा जवाब सुन वो भाग गया।
शाम को पूरी गली के लोग फिर हमारी डोरबैल पर
“ किसी ने एक कुत्ते को मार कर हमारे चौक पर फैंक दिया है आप अपने कैमरे देख कर उस आदमी की फोटो हमे भेज दो जिस ने ये सब किया”
-तो आपने नही कहा था उसे ये सब करने को?
सब मुकर गये।
हमने अपने सी सी टी वी से उसकी फोटो ढूढ़ी और उन्हे दे दिया।
और समझाया की
“ ये कुत्ते गली के कुत्ते ही नही हमारे मित्र भी है हमारे रखवाले भी है।
हमें इनकी मदद करनी चाहीये। इन पर अत्याचार करने वालों को रोकना टोकना चाहिये।क्या पता वो कुत्ते भगाने वाले कोई चोर उचक्के ही हों,गली मे कुत्ते नही होंगे तो किसी भी चोर के आने पर भौंकेगे नही और वो आराम से चोरी चकारी को अन्जाम दे देंगे।
ये सब ही तो गली के राजा हैं।और मौहल्ले की रौनक भी हैं”
उस दिन से गली का माहौल बदल गया है सब कुत्तों की मदद को आगे बढे़ और कल तो गज़ब ही हो गया।हमारे घर के साथ लगते खाली प्लाॉट पर सुबह सुबह चहल पहल शुरू हो गई।किसी ने मजदूरों की सहायता से साफ सफाई अभियान चलवा डाला। कुड़ा कबाड़ हटाया गया। कोई ईंट तो कोई सिमेंट लाया और देखते ही देखते एक प्यारा सा छोटा सा घरोंदा तैयार हो गया। जिसे आप सेफ हाऊस भी कह सकते हो। सर्दी गर्मी और बरसात मे ये बेजुबान आसरा पा सकते हैं।
मुझे इस बात की बहुत ज्यादा खुशी हुई की सेफ हाऊस बन रहा है। पर ज्यादा खुशी इस बात पर हुई की उसे बनाने वाले कोई बड़े बड़े लोग नही गली के बच्चे ही थे।जिनमे इन्सानियत जल्दी जागती है और बच्चों व महिलाओं से ही बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद रखी जाती है।


© अभिन्न