...

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कत्लेआम
हर रोज़ होता है । एक राज़ दफ़न सीने में कहीं।।
अब तो मालूम होता है । दिल भी कब्रिस्तान सा हंसी।।...

इंसान को कोई इंसान रहने नहीं देता आज के ज़माने में।जहां से गुजरता है थोड़ा डरा सहमा सा मालूम होता है।लगता है किसी ने कत्ल कर दिया हो उसके जीवंत जीवन का।अब सिर्फ जिम्ममेदारिया और रिवाजों से भरा मालूम दिखाई पड़ता हैं।ऐसा वो था नहीं कभी ,बस ये हर रोज़ और हर जगह पर होते हिसाबो ने उसे ऐसा बना दिया है।स्कूल में टीचर कत्ल कर देता है उसके बेखौफपने का ,घर पर मां बाप कत्ल कर देते हैं उसकी मासूमियत का,परिवार में रिश्तेदार कत्ल कर देते है उसकी सचाई का ,जवानी में प्रेमी/प्रेमिका कत्ल कर देते है उसके मस्तमौला जीवन का,समाज कत्ल कर देता है उसकी निजित्व की पूंजी का, और परंपरा रिवाज के खोखले घर कत्ल कर देते है उसकी चंचलता, दुनिया कत्ल कर देती है उसकी खुशहाली भरी जिंदगी का।
हर रोज़ दर रोज़ कत्लेआम होता है ऐसे ही चुपचाप...कोई इसे हिस्सा मान लेता है जिंदगी का,कोई सिसकियों में समेट लेता है जिंदगी को,कोई मरने का इंतजार करता है फिर भी, कोई खुदकुशी का नाम ले लेता है।

सबकुछ खतम भी हो जाए तो भी ये सितम कम न होगा।
कोई होगा दुनिया में,फिर भी शामिल दुनिया में n होगा।।



💞... पूजाप्रेम...💞
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