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दहेज- एक कुप्रथा
दहेज का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में अत्याचार, आक्रामकता तथा हिंसा जैसे शब्द स्वतः आने लगते हैं।
किन्तु क्या कभी इस विषय पर अपनी व्यक्तिगत विचारधारा को अलग रखकर इसके एक और पहलू पर विचार किया है।
यदि कोई माता-पिता अपनी बेटी को स्वेच्छा से कुछ देते हैं तो इसमें गलत क्या है?
मेरी व्यक्तिगत विचारधारा में दहेज की माँग करना निन्दनीय कृत्य है किन्तु अपनी स्वेच्छा से अपनी बेटी को कुछ देना तो निन्दा का विषय नहीं है।
जिस घर मे माता-पिता अपने जीवन की अमूल्य पूंजी यानी अपनी बेटी देते हैं उसी के साथ यदि वो स्वेच्छापूर्वक कुछ अपनी पूँजी यानी कि धन-दौलत में से देते हैं तो इसे दहेज या निंदा जैसे शब्दों की उपाधि नहीं देना चाहिये। समाज के एक वर्ग के कारण अन्य सभी लोगों पर सवाल नहीं उठाने चाहिये।
इन सभी विचारों को ध्यान में रखते हुए हमें समाज के उस वर्ग को नहीं भूलना चाहिए जो दहेज की माँग करते हैं।
दहेज की माँग करने वालों से मेरा यह सवाल है कि खुद का घर बनाने के लिये एक दूसरा घर उजाड़ना कहाँ की मानवता है?
वो माता-पिता तो कहीं से भी आपको देंगे ही पर क्या कभी ये सोचा है कि जिन्होंने अपनी बेटी जो कि उनके जीने का सहारा थी वो आपको दी यदि आप उनसे उनका घर भी ले लेंगे तो वो कहाँ जाएंगे?
मेरी विचारधारा में दहेज देना गलत है किन्तु दहेज की माँग करना अत्यंत ही निन्दनीय कृत्य है।
"ये किसी वर्ग विशेष के ऊपर नही है ये उस सोच के ऊपर है जिसके बोझ से हर वर्ष न जाने कितनी स्रियाँ आत्महत्या कर लेती हैं, ये उस सोच के ऊपर है जिसका बोझ गरीब बाप जिंदगी भर उठाता है।"
कृपया दहेज की माँग करना बंद करें🙏।