बड़का चुनाव , छोटका आदमी
बड़का चुनाव , छोटका आदमी
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"आपका भोट कीमती है " इसको बेरबाद नहीं करना है। मोहर मारो तान के हमरा छाप पेहचान के। अबकी बार हमरी सरकार। जात पे न पात पे मोहर मारो सीना तान के। आप हमको भोट दो , हम आपको आजादी। इ सब के हल्ला गुल्ला औरो शोर शराबा से बार बार लोकतंत्र जिन्दा होता है और औरो इलेक्शन के बाद कुपोषित होकर फिर मर जाता है। यही भारत का कभी न मरने वाला लोकतंत्र है और सारा दुनिया भारत का अमर लोकतंत्र का पुनर्जीवन देखकर दांतो तले ऊँगली दबाकर अपना अपना ऊँगली काट खाता है। ऐसे थोड़े न भारत एक सशक्त लोकतंत्र है औरो इसका चुनाव दुनिया का सबसे बड़का औरो अजूबा मेला है। इ मेला का मेन बाजार गांव में ही तो लगता है औरो पंचायत चुनाव तो दुनिया का सबसे बड़का चुनाव से भी बड़का होता है। आखिर पंचायती राज व्यवस्था ही तो लोकतंत्र का बीज होता है। आज अगर मार्क्स औरो लेनिन जिन्दा होता तो इ चुनाव देखकर उसका सीना चौड़ा हो जाता। नयका आमिर - पुरनका गरीब , छोटका आदमी - बड़का आदमी , शोषक -शोषित , जनाना- जनानी , कुकुर - बिलाय सब के सब को बिना कोनो भेद - भाव के इस मेला में एक्के पिलेट में एक साथ पीला - पीला चाट औरो झाल-झाल घुपचुप औरो गुलाबी - गुलाबी जलेबी का मजा लेते देख लेनिन औरो माओत्सेतुंग तो ख़ुशी से पगला गए होते। क्या मंदिर , क्या मस्जिद , क्या गिरजा , क्या गुरुद्वारा सब जगह चौपाल में खचा- खच लोग अड्डा जमा देश के भविष्य पर चिंता में पगलाइल रहते है। "धर्म अफीम है " इ बात भारत में लागु नहीं है इ मार्क्स को पता नहीं था। भारत में धरम का मतलब अलग है। यहाँ धरम भी साम्यवादी चद्दर ओढ़कर सब पूंजपति लोगन का खर्चा - पानी से जिन्दा है। यहाँ बड़का आदमी मंदिर बनवाता है...
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"आपका भोट कीमती है " इसको बेरबाद नहीं करना है। मोहर मारो तान के हमरा छाप पेहचान के। अबकी बार हमरी सरकार। जात पे न पात पे मोहर मारो सीना तान के। आप हमको भोट दो , हम आपको आजादी। इ सब के हल्ला गुल्ला औरो शोर शराबा से बार बार लोकतंत्र जिन्दा होता है और औरो इलेक्शन के बाद कुपोषित होकर फिर मर जाता है। यही भारत का कभी न मरने वाला लोकतंत्र है और सारा दुनिया भारत का अमर लोकतंत्र का पुनर्जीवन देखकर दांतो तले ऊँगली दबाकर अपना अपना ऊँगली काट खाता है। ऐसे थोड़े न भारत एक सशक्त लोकतंत्र है औरो इसका चुनाव दुनिया का सबसे बड़का औरो अजूबा मेला है। इ मेला का मेन बाजार गांव में ही तो लगता है औरो पंचायत चुनाव तो दुनिया का सबसे बड़का चुनाव से भी बड़का होता है। आखिर पंचायती राज व्यवस्था ही तो लोकतंत्र का बीज होता है। आज अगर मार्क्स औरो लेनिन जिन्दा होता तो इ चुनाव देखकर उसका सीना चौड़ा हो जाता। नयका आमिर - पुरनका गरीब , छोटका आदमी - बड़का आदमी , शोषक -शोषित , जनाना- जनानी , कुकुर - बिलाय सब के सब को बिना कोनो भेद - भाव के इस मेला में एक्के पिलेट में एक साथ पीला - पीला चाट औरो झाल-झाल घुपचुप औरो गुलाबी - गुलाबी जलेबी का मजा लेते देख लेनिन औरो माओत्सेतुंग तो ख़ुशी से पगला गए होते। क्या मंदिर , क्या मस्जिद , क्या गिरजा , क्या गुरुद्वारा सब जगह चौपाल में खचा- खच लोग अड्डा जमा देश के भविष्य पर चिंता में पगलाइल रहते है। "धर्म अफीम है " इ बात भारत में लागु नहीं है इ मार्क्स को पता नहीं था। भारत में धरम का मतलब अलग है। यहाँ धरम भी साम्यवादी चद्दर ओढ़कर सब पूंजपति लोगन का खर्चा - पानी से जिन्दा है। यहाँ बड़का आदमी मंदिर बनवाता है...