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मेरे ख़त तुम्हारे लिए
मैं तुम्हें ख़त लिखना चाहती हूं, ढेर सारे ख़त।
हर ख़त में तुमसे जुड़ी, मुझसे जुड़ी ढेर सारी बातें।
मेरे दिन कैसे बीते, कितने पूरे अधूरे चाँद निहारे,
जब तुम्हें याद किया तो क्या किया,
और जब याद नहीं किया तो क्या किया, सब का ब्योरा देना चाहती हूं।
मेरा बिन मतलब खिजना, तुम्हारा मौसमों की तरह बदलना
अपनी बचकानी बातों को दोहरा दोहरा के हँसना
और कभी रो लेना।
उन रातोँ का हिसाब जो बिना नींद के काट दी, उन दिनों के हिसाब जो बस कट जातें हैं और ज़िंदगी में जुड़ जाते है, कभी मैं मुड़ जाती हूँ, कभी फ़िर आके जुड़ जाती हूँ।
क्या कहूँ तुमसे में आज भी बिना पते भटक रही हूँ।
मुझे कभी कभी लगता हैं मेरा घर खो गया हैं और मैं हर दूसरे घर को निहारती हूँ।
अपना घर ढूंढती हूँ। पर मुझे कोई अपना नहीं लगता।
खुद को कहानियों के किरदारों में ढूढ़ती हूँ सोचती हूँ अंत में सब भला होगा।
मैंने कितने कहानियां पढ़ी, किताबें पढ़ी, उनमें लिखी बातें तुम्हें लिखना चाहती हूँ।अब तो मुझे किताबों की,कहानियों की, फिल्मों की मोहोब्बत भी नहीं भाती, सब जूठ लगता हैं।
पर मोहब्बत के सच को भी नकारा नहीं जाता।
मैं मोहब्बत लिखना चाहती हूं तुम्हें।
कभी कभी सोचती हूँ दुनिया की ढ़ेरों किताबों में लिखी मोहब्बत की हर बात तुन्हें लिख दूँ।
बारिश के वो भीगें दुपट्टे, कभी मेरा फिसला पैर, मेरी कोहनी की चोट, परांठे के तेल से जला हाथ भी लिखूं।
उदासी में बेसुलझाये बाल, किसी ख़ुशी मैं भरी हुईं आँखे, किसी के तीखे बोलों पे सिले हुए होंठ।
बिखरा हुआ मेरा मन, औऱ कभी न टूटने वाली अजीब आस।
सब लिख दूँ।
कितना कुछ समेट लिया है मैंने खुद में ।
फ़िर सोचती हूँ मैं तो पूरी ज़िंदगी लिखती रहूंगी,
क्या तुम पूरी ज़िंदगी पढ़ पाओगें।
पढ़ तो लोगें न।

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© maniemo