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यादोँ का बचपन
ʙᴀᴄʜᴩᴀɴ
यादो का बचपन
एक किस्सा सुनाती हु अपने बचपन का,
साथ खाना पीना,उठना बैठना,कढ़ाई बुनाई करना और धमचोक्ड़ी करना दिन भर ,कब शाम हो जाती और वह चली जाती अपने घर,हम उम्र थे हम दोनों
हमारे यहाँ गावं मै जो कहार काम करते थे उनकी पोती थी वह,एक अरसा गुजरा ,पिता जी शहर की और रुख किये काम धंधा की तलाश मै ,मेरे तो जेसै सुई छुभ् गई हो यह सुनते हुए, अब हमें गावं छोड़ना होगा और शहर इलाहाबाद जाना होगा,मेरा गावं प्रतापगढ़ मै है,जहां ना जाने मैंने अपनी कितनी यादेँ छोड़ आई, खैर समय गुजरा,धीरे धीरे हम अपनी यादो से बाहर निकले ,नए यादो की तलाश करने लगे,नए संग साथी बने,पिता जी का काम भी अच्छा चल रहा था।दिन गुजरते गये अपनी लय मै, एक दिन गावं से पिताजी को न्योता आया,की फलाने के यहाँ शादी है,मै पास ही खड़ी थी पिता जी के पास,मैंने कार्ड खोला नाम देखा तो चौंकि अरे ये तो साधना है मेरी दोस्त ,(जिसका जिक्र मैंने शुरुआत मै किया है मेरी बचपन की साथी)
मैंने पिता जी से कहा ,पिता जी हम सबको चलना चाहिए, इसी बहाने बहुत दिन हो गए मुझे गावं घूमे,पिता जी कुछ देर ना जाने क्या सोचे फिर बोले चलो सब अपनी अपनी तैयारी कर ले हम कल सुबह ही निकलेंगें ।
मैंने तो झट से तैयारी करना शुरू कर दिया ,तभी मम्मी बोली अरे भई,कल सुबह चलना है अभी शाम को नहीं,शायद मम्मी को मेरे खुशी का ठिकाना पता चल गया था ।
करवट बदलते बदलते सारी रात बिस्तर पर मेरी गुजर गयी कि ,जल्दी सुबह हो और फिर कब जाने मुझे नींद आ गयी..
मम्मी ने उठाया थोड़ी ही देर मै ,मै उठ गई ,वजह जानना चाहा मम्मी ने,लेकिन फिर मुस्कराती हुई चली गयी ।
आज सुबह की किरणें भी रोज की तरह कुछ ज्यादा ही मुस्करा रही थी,मेरी तरह
वजह ही कुछ ऐसी थी,की मै गावं जा रही थी अपने और वहीं यादेँ जो मै और साधना जिसमें हमारा बचपना बिता था,वहीं यादेँ जिसमें हम साथ थें दो हम जोली की तरह
तभी मम्मी की आवाज़ सुनाई दी,अरे चलना नहीं है क्या अपने गावं,मेरी खुशी थी मेरी साधना मै मेरी उस सखी मै जिसकी कल शादी थी।
गावं की तरफ उस रास्ते की तरफ इशारा करते हुए मै अपने छोटे भाई को बता रही थी देखो वहां जो पेड़ लगा है भरी दुपहरी मै हम आम तोड़ने आते थे,वो भी टुकुर टुकुर कर अपनी आखोंं से मुझे देख रहा था,जैसे कुछ समझ गया हो.
आह!मैंने लम्बी साँस ली ,मेरा गावं आ गया आखिर
सब अपने अपने घर से बाहर निकले और साधना के घर से लोक गीत और ढोलक की थाप् सुनाई दे रही थी,मेरी बचपन की सहेली कल विदा हो जाएगी ,मेरी सब सखी सहेलियां आ गयी थी
बस वो नहीं आई थी,आती भी तो कैसे आज उसे हल्दी जो लगी थी,मैंने मम्मी से कहा मै जा रही हु उससे मिलने ..
पिता जी ने सुना,और बोले हम भी चलते हैं उसे आशिर्वाद देने,मै जेसे ही उसके घर गई ,वो झट गले लगकर मुझसे खूब रोयी
कितनी बातें हुई ,जो बीत गये गीले शिकवे दूर हुए, और फिर मैंने कहा चल अपने मुझे मेरे जीजा जी की फोटो दिखा ,बस फिर हम् दोनों साथ मै खूब हंंसे और वो जहां जा रही वो घर भी बहुत सपन्न् है और लड़का भी खूब पढ़ा लिखा है
साधना आज भी वैसी है,जैसी पहले थी,सयोंग से मेरा ससुराल (कान पुर) भी वहाँ पर है