...

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अपने आप को कमजोर मत समझो
तू अपने आपको कमज़ोर समझता है,
अपने आपको हीन मानता है,दलित,पीड़ित जानता है,
पर मैं तो तुझ पर ही फ़िदा हूंँ।
मुझे अमीरों की अट्टालिकाएं
आकर्षित नहीं करती ,मुझे तो मेहनत से बनाई
तेरी झोंपड़ी ही ताजमहल लगती है।
ऊंचे उड़ते जहाज मुझे रोमांचित नहीं करते,
मुझे तो तेरे सपनों की उड़ान भाती है।
लोग लिखते होंगे ग्रंथ,पढ़ते कसीदे अमीरों के लिए,
मैं तो मेरे शब्द तुझे समर्पित करता हूंँ।
तेरे हाथों के स्पर्श से शीशमहल बने,पुल,नदी,किले, सड़क,सागर तक तूने बना डाले।
यहाँ तक कि स्वयं भगवान भी पा सका ठिकाना
तेरे ही उपकार से।
वह कौन-सा हिस्सा धरा का बाकी रहा,
जहाँ तेरा पसीना ना गिरा हो।
हर निवाले में तेरा स्वेद है,हर ईंट पर तेरी छाप है,हर धागे में तेरा स्पर्श है,हर कागज पर तू ही अंकित है,हर यंत्र तेरे ही मंत्र का फल है।
फिर तू कमज़ोर कैसे ?दीन कैसे ?हीन कैसे ?पीड़ित कैसे ?
हे श्रम के साक्षात् अवतार !तू सच्चा संत है,सच्चा योगी है। बस व्यथित हो जाता हूंँ
कभी-कभी,देखकर तेरी हालत,कि जिसने करोड़ों घर बनाए,उसके पास घर ?
जिसने सबका पेट भरा,उसके बच्चों का निवाला ?
जिसने सबके तन ढ़के,उस स्वयं के वस्त्र ?
जिसने बड़े-बड़े विद्यालय-विश्वविद्यालय बनाए,
उसके बच्चों की पढ़ाई ? किंतु शीघ्र ही मैं अपने आपको
संभाल लेता हूंँ।
देख कर तेरी मुस्कान,तेरी जिजीविषा,विपदाओं से लगातार तुझे लड़ता देख,कुछ हद तक मैं,समझाता हूंँ खुद को किंतु
हे मज़दूर ! हे श्रमजीवी ! तुझे तेरा हक़ मिलना ही चाहिए,
और मिलकर ही रहेगा।
विश्वास रख,उम्मीद मत हार। यूं ही संघर्ष कर,संघर्ष कर हर बार।क्योंकि तुझसे ही तो प्रेरणा पाता है समाज,
ज़िंदा है ज़िन्दगी,हे मज़दूर महान।