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मस्तूल….आधी अधूरी हसरतें
मस्तूल

आदिल को नाव से लौटे हुए काफ़ी दिन हो गए थे, आजकल उसका सारा दिन खाने और सोने में ही गुजर रहा था।

अनाथ आदिल का सारा बचपन इसी मछलीपट्टम की मछुआरा बस्ती में ही गुज़रा था, यहीं उसने मछली तुलाई से लेकर मछली पकड़ने तक का सारा हुनर सीखा और यहीं मुस्तकिम की नाव पर मछुआरा बन गया।

समन्दर में तूफ़ान का ज़ोर था सो सभी नावें किनारे पर लौट आयीं थीं उसी के चलते आदिल भी आजकल यूँ ही ठाल में था।

आदिल एक गठीले बदन का बाँका नौजवान था, मछलीपट्टम के उस छोटे से बंदरगाह की लगभग हर लड़की और औरत उस पर जान छिड़कती थी और किसी ना किसी तरह उसे पाने का जतन करती रहती थीं।

उस शाम आदिल अपने उस छोटे से कमरे में मसहरी पर बेसुध पड़ा था, शायद साकिब की पिलाई ताड़ी का असर उस अभी चढ़ा हुआ था, साकिब भी आदिल के साथ मुस्तकिम की नाव पर मछली पकड़ने जाता था वहीं से आदिल और साकिब की दोस्ती परवान चढ़ी थी।

शाम के लगभग छ बजने को है, गोधूली बेला मानो ढलने ही वाली है, सूरज की रोशनी मद्धम होते हुए अस्ताचल...