नैनों से अश्रु छलक जाते हैं।
" माँ"
यह शब्द स्वयं में सृष्टि के सृजन का पर्याय है । आज ही के दिन 8 अक्टूबर 1982 को हमारी पूज्यनीय माता जी इस नश्वर जगत से मोह माया को त्यागकर स्वर्गवासी हो गई ।
माता - पिता की अभिव्यक्ति अपने में एक पूर्ण अभिव्यक्ति है | और इनके जाने के पश्चात स्वतः जो मन के भाव प्रस्फुटित हुये वो इस प्रकार हैं-
'"नयनों में अश्रु छलक जाते हैं '"
जब भी कोई संवेदना पत्र । हैं ,
नयनों में अश्रु . छलक जाते हैं।
नयनों में अश्रु छलक जाते हैं I l
पूज्यनीय माता - पिता जिनकी ,
बांहों में खेला कूदा था |
खेलते -कूदते ही कब बड़े हो गये थे '
बचपन को भुला यथार्थ मे आ गये थे ।
जब भी कोई सुअवसर आयेगा,
आपका वरद हस्त हम पर छायेगा ॥
जब भी प्यार दुलार के क्षण आते हैं ।
नयनों में अश्रु छलक जाते हैं ॥
जीवन में प्रत्येक प्राणी पर,
दुःख और सुख आता है ।
दुःख की रजनी पश्चात भी ही ,
सुख का प्रभात छाता . है ॥
पूज्य माता - पिताजी आपको ,
शत -शत नमन करती हूँ |
आपके आशीष से ही ,
पथ अपना प्रशस्त करती हूँ
जब भी आप के प्रतिबिंब,
पास आते हैं ,नयनों में ... .. ..
जब भी स्वजनों की सहानुभूतियाँ
प्राप्त होती हैं तब हम सनाथ
होकर भी अनाथ होते हैं
अतीत की स्मृतियों का ,
पुनरावर्तन होता हैं ।
क्षण मात्र को स्वप्न दर्शन होता है
जब हम चैतन्यता में आते हैं।
नयनों में अश्रु छलक जाते हैं।
नयनों में अश्रु छलक जाते है l
निवेदिता अस्थाना "किरण"
यह शब्द स्वयं में सृष्टि के सृजन का पर्याय है । आज ही के दिन 8 अक्टूबर 1982 को हमारी पूज्यनीय माता जी इस नश्वर जगत से मोह माया को त्यागकर स्वर्गवासी हो गई ।
माता - पिता की अभिव्यक्ति अपने में एक पूर्ण अभिव्यक्ति है | और इनके जाने के पश्चात स्वतः जो मन के भाव प्रस्फुटित हुये वो इस प्रकार हैं-
'"नयनों में अश्रु छलक जाते हैं '"
जब भी कोई संवेदना पत्र । हैं ,
नयनों में अश्रु . छलक जाते हैं।
नयनों में अश्रु छलक जाते हैं I l
पूज्यनीय माता - पिता जिनकी ,
बांहों में खेला कूदा था |
खेलते -कूदते ही कब बड़े हो गये थे '
बचपन को भुला यथार्थ मे आ गये थे ।
जब भी कोई सुअवसर आयेगा,
आपका वरद हस्त हम पर छायेगा ॥
जब भी प्यार दुलार के क्षण आते हैं ।
नयनों में अश्रु छलक जाते हैं ॥
जीवन में प्रत्येक प्राणी पर,
दुःख और सुख आता है ।
दुःख की रजनी पश्चात भी ही ,
सुख का प्रभात छाता . है ॥
पूज्य माता - पिताजी आपको ,
शत -शत नमन करती हूँ |
आपके आशीष से ही ,
पथ अपना प्रशस्त करती हूँ
जब भी आप के प्रतिबिंब,
पास आते हैं ,नयनों में ... .. ..
जब भी स्वजनों की सहानुभूतियाँ
प्राप्त होती हैं तब हम सनाथ
होकर भी अनाथ होते हैं
अतीत की स्मृतियों का ,
पुनरावर्तन होता हैं ।
क्षण मात्र को स्वप्न दर्शन होता है
जब हम चैतन्यता में आते हैं।
नयनों में अश्रु छलक जाते हैं।
नयनों में अश्रु छलक जाते है l
निवेदिता अस्थाना "किरण"