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वो दर्द नहीं आसान
समाज में विकृति बहुत है
महिलाओं के प्रति सम्मान तो है पर समान नहीं भावना जैसी

एक महिला की जीवन चक्र व्यख्या करना उतना कठिन नहीं
जितना उनका संघर्ष होता है

जीवन की शुरुआत तो उनकी भी वहीं से होती है जहाँ एक पुरूष की होती है
बचपन में उनकी भी अभिलाषा विशेष होती होती है

युवावस्था में प्रवेश करते ही एक चमक आ जाती है जीवन के प्रति सजग और आत्मविश्वास से परिपूर्ण

उच्चशिक्षा ग्रहण कर जब वह ससुराल जाती है तो उसके मन में जिज्ञासा होती है कि वहाँ का पारिवारिक माहौल मेरे अनुकूल होगा
पति और सास ,ससुर, देवर घर के सभी सदस्य मेरी विचारधारा का उचित मार्गदर्शन कर मुझे जीवन में आगे बढ़ने में सहयोग करेंगें

ये उस स्त्री की अभिलाषा है जो विवाह से पहले उसने सपनो में संजोया था

इसके विपरीत जब वह ससुराल में सिर्फ बहु और पत्नी तथा भाभी बनकर रह जाती है

शिकायत नहीं कर सकती किसी से की मै
बंधन में जकड़ी हुई महसूस कर रहीं हूँ

मैं सिर्फ गृहिणी बनकर रह गयी
मेरी पढ़ाई मेरी शिक्षा अब कागज़ों में अंकित है

मायका पराया हो गया है

पति का साथ तो है पर सास की मंजूरी नहीं
पत्नी दबा लेती है अपनी उठती आकांक्षाओं को मन में
क्योंकि वो तोड़ना नहीं चाहती परिवार को अपने घर संसार को

जब वह मां बन जाती है तो अपने सपने बच्चे में देखती है
की जो मैं न कर सकी जिंदगी में वो मेरी बेटी या मेरा बेटा पूरा करेगा

अपने सपनों को दोबारा जिंदा कर अपने बच्चों में संरक्षित रखती है

ये संघर्ष स्त्री की मार्मिक चित्रण है



kuldeep rathore KD