"विचार की महत्वपूर्ण कहानी"
#कालीकुर्सी
वास्तविक मूल्य किसी चीज के आकार या कीमत में नहीं, बल्कि हमारी आदतों, आवश्यकताओं और दृष्टिकोणों में छिपा होता है। हमें बाजार के बाजारूपन में नहीं पड़ते हुए , केवल जरूरत अनुसार ही चीजे खरीदनी चाहिए। इससे मन संतुष्ठ रहता है, फिजूलखर्च की आदत भी सुधरने लगती है और बाद में पचतावा नहीं होता। इसी उद्देश्य पर आधारित है आज की यह कहानी।
पुराने बजार की छोटी सी दुकान में नंद नामक एक मुलाज़िम काम करता था। एक दिन, एक गुलाबी साड़ी में सजीव और जिंदगी से खुश रहने वाली सरिता नामक ग्राहक दुकान में आते हैं।
"भईया, इस कुर्सी की कीमत है क्या?" सरिता ने आवाज दी।
"किस कुर्सी की, इसकी?" नंद ने पूछा, पास पड़ी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए।
"नहीं भईया, ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसका पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए।" सरिता ने बताया।
नंद उसकी मांग पर मुस्कुराया और कहा, "आपने सही वाली कुर्सी चुनी है। यह वाकई बहुत खास है।"
सरिता काली कुर्सी की ओर देखने लगी, जो दूर शीशे के उस पार रखी,आलीशान काले रंग की कुर्सी थी। उसकी सुंदरता और चमक सभी को आकर्षित कर रही थी।
नंद ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह कुर्सी सचमुच एक सिंहासन सी जान पड़ रही है। लेकिन याद रखिए, सब जो चमकता है, वह सच नहीं होता।"
सरिता ने हौसला दिलाने वाले नंद की ओर देखा और बोली, "आपने बिल्कुल सही कहा। विचार करने के बाद, मैंने यह निर्णय लिया है कि मेरे बाबू के लिए सर्वोत्तम होगी वह सामान्य कुर्सी, जो मेरे बाबू को सच्ची आराम और सुखद विश्राम दे सके।"
वह समझ गयी थी कि जीवन के असली मायने स्वार्थ से परे होते हैं। अपनी आवश्यकतानुसार ही खर्च करना चाहिए।
© shî
वास्तविक मूल्य किसी चीज के आकार या कीमत में नहीं, बल्कि हमारी आदतों, आवश्यकताओं और दृष्टिकोणों में छिपा होता है। हमें बाजार के बाजारूपन में नहीं पड़ते हुए , केवल जरूरत अनुसार ही चीजे खरीदनी चाहिए। इससे मन संतुष्ठ रहता है, फिजूलखर्च की आदत भी सुधरने लगती है और बाद में पचतावा नहीं होता। इसी उद्देश्य पर आधारित है आज की यह कहानी।
पुराने बजार की छोटी सी दुकान में नंद नामक एक मुलाज़िम काम करता था। एक दिन, एक गुलाबी साड़ी में सजीव और जिंदगी से खुश रहने वाली सरिता नामक ग्राहक दुकान में आते हैं।
"भईया, इस कुर्सी की कीमत है क्या?" सरिता ने आवाज दी।
"किस कुर्सी की, इसकी?" नंद ने पूछा, पास पड़ी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए।
"नहीं भईया, ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसका पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए।" सरिता ने बताया।
नंद उसकी मांग पर मुस्कुराया और कहा, "आपने सही वाली कुर्सी चुनी है। यह वाकई बहुत खास है।"
सरिता काली कुर्सी की ओर देखने लगी, जो दूर शीशे के उस पार रखी,आलीशान काले रंग की कुर्सी थी। उसकी सुंदरता और चमक सभी को आकर्षित कर रही थी।
नंद ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह कुर्सी सचमुच एक सिंहासन सी जान पड़ रही है। लेकिन याद रखिए, सब जो चमकता है, वह सच नहीं होता।"
सरिता ने हौसला दिलाने वाले नंद की ओर देखा और बोली, "आपने बिल्कुल सही कहा। विचार करने के बाद, मैंने यह निर्णय लिया है कि मेरे बाबू के लिए सर्वोत्तम होगी वह सामान्य कुर्सी, जो मेरे बाबू को सच्ची आराम और सुखद विश्राम दे सके।"
वह समझ गयी थी कि जीवन के असली मायने स्वार्थ से परे होते हैं। अपनी आवश्यकतानुसार ही खर्च करना चाहिए।
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