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माँ मेरी माँ
कर दू कुर्बान अपना सब तुझ पर फिर भी, कमी मेरी पास कुछ ना होंगी।
डर नहीं मौत का अब मुझे, मेरी माँ की दुआ ही मेरी रखवाली करेंगी।।

आज का दिन उसका दिन हैं जिसने हमें ये जीवन दिया हैं,हमारे जीवन को खुशनुमा बनाया हैं,वैसे देखा जाये तो वो किसी दिन कि मोहताज नहीं है,कभी - कभी मन में ये विचार आता है की क्या हम कभी उसके कर्ज को चूका सकते है, नहीं कभी नहीं, हम उसके पैर के एक धुल के कंकड़ के बराबर भी कुछ नहीं हैं। हम अपनी माँ को सिर्फ आज मदर्स डे के दिन ही क्यों विश करें,या इस दिन के आने का इंतजार क्यों करें, क्या वो हम पर अपना प्यार लुटाने ले लिए किसी दिन का इंतजार करती है। और एक सवाल मैं उन लोगों से भी पूछना चाहता हूं जो अपनी माता पिता को बृद्धा आश्रम में छोड़ आते है, क्या ये करते हुए उनके हाथ नहीं काँपते,क्या उनका ज़मीर उन्हें मना नहीं करता, क्या अपने इस कृत्य से उन्हें शर्म नहीं आती, जिन माँ बाप ने अपनी जिन्दगी कुर्बान कर दी उसकी जिन्दगी बनाने में इस काबिल बनाने में वो उनका सहारा नहीं बन सकते।
सोचने वाली बात यह भी है मिलो दूर हो कर भी हमारे बीमार होने पर कैसे उसे पता चल जाता है,जब भी हो परेशान जुबां में हर वक़्त उसका नाम आता है, घर आते ही सबसे पहेले माँ मैं आ गया, निगाहें सबसे पहेले पुरे घर मे माँ को ही खोजती है माँ तो माँ होती है। खुद अंधेरे में खड़े हो कर हमें उजियारे में रखती है, खुद भूखी रह पहेले हमें भर पेट खिलाती है, सबके सोने के बाद सोती उठने से पहेले उठ जाती है माँ तो माँ होती है माँ तो माँ होती है।

चूका कैसे पाएंगे कर्ज उसके, जिसने हमें दी है एक पहचान।
जता क्या पाएंगे प्यार उससे अपना, जो खुद है प्यार का दूसरा नाम।

क्या लिखू माँ के बारे में, जितना लिखू शब्द कम पड़ जाते है।
खुदा मौजूद नहीं रह सकता था हर जगह, इसलिए खुदा रूप में माँ बनकर खुद आया है।।