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अध्याय-3
पौथ- घनत्व
हर फसल को फलने फूलने और बढ़ने के लिए एक अनुकूलतम क्षेत्र की आवश्यकता होती है। मैं कोई कृषि वैज्ञानिक नहीं। लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि उत्पादकता में आवश्यक तमाम अवयवों से इतर पौध घनत्व का अपना अलग ही महत्व है।
इसके लिए किसी अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता नहीं । अपितु निवेश में बचत ही संभव है।
उदाहरणार्थ धान की रोपाई के दो प्रकार मैंने संज्ञान में लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार के अधिकांश भाग में सीडलिंग के 7 से 8 पौध एक साथ रोपे जाने की प्रथा है, गुच्छों में।
तथा इनकी दूरी लगभग 1 फीट के आसपास रखी जाती है। वही पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा पंजाब के अधिकांश भागों में एक से दो सीडलिंग लगभग 8 इंच की दूरी पर रोपे जाने की प्रथा है।
कालांतर में दो सीडलिंग बेहतर स्प्राउटिंग करती है जबकि आठ सीडलिग की स्प्राउटिंग कमजोर रह जाती है। अंत में स्वस्थ पौध घनत्व 8 इंच पर स्थापित रोपाई में 1 से 2 सीडलिंग वाले से कहीं अधिक हो जाती है।
फल स्वरूप फल स्वरूप उत्पादकता में डेढ़ गुने से अधिक का अंतर हो जाता है।
पूर्वांचल में जहां दो से ढाई टन ही पैदावार प्रति हेक्टेयर हो पाती है वही पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं पंजाब में 4.5 से 5 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
गेहूं,चना,मटर सभी की बुवाई सीड ड्रिल से कूड़ो में की जाती है। इस विधि से पौध से पौध की दूरी विषम हो जाती है।
इन फसलों में अनुकूलतम पौध घनत्व हेतु डिबलिंग विधि से बुवाई अधिक उपजाऊ हो सकती है।
इस विधि में यद्यपि अधिक श्रम लगेगा तथापि उत्पादकता में वृद्धि तथा इन क्षेत्रों में बेरोजगारी अधिक होने के कारण यह एक अत्यंत ही क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों को मैकेनाइज्ड डिबलिंग पर कार्य करने की नितांत आवश्यकता है।
जैसा कि मैंने प्रस्तावना में ही उल्लिखित किया है की कृषि में क्रांति लाने हेतु सबसे अधिक महत्वपूर्ण निवेश ज्ञान ही हो सकता है।
अतः अनुकूलतम पौध घनत्व पर कार्य किए जाने की नितांत आवश्यकता है।