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उसका नाम राधिका था (भाग्य 1)
जब देखा तो ऐसा लगा मानो दुनिया थम गई, इतनी प्यारी आँखें जिसमें कई सारे बातें थी। छुप छुप कर प्यार होता है, ये पहली बार महशुस किया। जैसे ही मैंने आँखें खोली तो दोपहर के तीन बजने वाले थे, और मैं अपनी पहली ही क्लास के लिए लेट होने वाला था। तो एक कॉपी को बेग में डाला और रूम से भागता हुआ ट्यूशन पहुँचा। सर तो अभी नहीं आए थे, परंतु भीड़ बहुत थी। सौ से अधिक बच्चे एक साथ बैठे हल्ला कर रहे थे, सबसे अंजान मैं पीछे की एक सीट पर बैठ गया। क्लास में सबको देख रहा था, तब अचानक से मेरी आँख एक आँख से टकराई, भीड़ में बस उसकी आँखें दिख रही थी। पहले तो उससे ख़ुद को दूर करने की कोशिश की परंतु न जाने क्यों मेरी आँखें बार बार उस मतवाली आँखों से टकरा ही जा रही थी और मैं बस उसकी आँखों को देख कर उसे देखना चाह रहा था। परंतु उसकी झुल्फे से छिपी और दूसरे लोग से धके थोड़े से मुखड़े को देख पाया। मैं उसे देखना चाहता था, पर जब तक मैं उसे अच्छे से देखता तब तक हमारे सर क्लास में आ चुके थे। तो उसकी खोज छोड़ मैं पढ़ाई में लग गया। परंतु सर जैसे बाहर जाते मैं उसको खोजने लगता, न दोस्त थे, न उसका नाम पता था। तो किसी से पूछ भी नही सकता था। शायद ये लड़का पहली नज़र में दिल हार बैठा था, इसलिए बस उसे खोजता जा रहा था।

वो लड़कियो में सबसे किनारे बैठी थी, थोड़ी सी आँखें दिखती बस, मैं देखने की कोशिश करता, परंतु देख नही पाता। अब आप सोचोगे देखने में इतनी कथनाई क्यों, क्योंकि मुझे न सिर्फ देखना था, आसपास बैठे लोगों को पता भी न चले की मैं किसी को देख रहा इसका भी ख़्याल रखना था, क्योंकि पहले दिन आकर प्रेम कौन कर बैठता है! वो भी वो लड़का जो अपने परीक्षा की तैयारी को आया हो, तो लोक लज्जा का डर एक विधार्थी में देखने को मिलता है वो मेरे भी अंदर था, इसलिए देखना बहुत मुश्किल था। और इधर उसी दौरान एक लड़का बार बार मुझे परेशान किये जा रहा था, तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारा नाम क्या है? उस वक़्त उसके ये स्वर मेरे कान में चुभ रहे थे। मानो जैसे मेरे और उसके मिलने के वो ही बाधा हो। एक तो उसको देख नही पा रहा था, उपर से ये लड़का को पता नही क्यों मेरा नाम जानना था? मैंने गुस्से में बोल दिया, मेरा नाम कृष्णा है। कृष्ण वासुदेव, तो वो बोलता है सच में? मैंने फिर हाँ बोल दिया! शायद ये बोलना मेरे लिए उस वक़्त बहुत अच्छा था, क्योंकि जैसे ही मैंने ये कहा उसने तुरंत मुझसे कहा क्लास में एक लड़की है, जिसका नाम राधिका है। मैंने गुस्से में बोला तो? वो बोलता है "देख लो शायद ये कृष्ण भी राधा पे मर जाए।" मैंने बोला तु फ़िल्म कम देखा कर कुछ भी बोलता है। वो बोलता है "अरे देख तो ले बहुत लोग मरते है, उसपे।" इतना बोल कर उसने मेरे सर को पकड़ा और थोड़ा दायें ओर घुमा दिया, मैंने जैसे ही देखा मैं चौंक गया, खो गया और बस उसे देखता रह गया। क्योंकि वो कोई और नही वही लड़की थी जिसे मैं ढुंढ रहा था, उसका नाम राधिका था। मुस्कुराते अधर्, खुली झुल्फे, और चंचलता से भरे उसकी नयन मानो कुछ कह रही हो मुझे। और मेरे कान में बस एक ही चीज गूंज रही थी, कि उसका नाम राधिका है।
© A.K.Verma
कहानी अजनबी से अजनबी तक का पहला भाग उसका नाम राधिका था समाप्त।