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किस्सा आम का
किस्सा आम का
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आम का बड़प्पड़ तो उसके नाम से ही झलक जाता है। इतना खास होकर भी नाम है " आम”। आम की लकड़ी , आम और आम का पल्लव ये तीन तत्व कोई आम तत्व नहीं । इसने हमारे जीवन तत्व को अपना तत्व देकर हमें आज भी जीवंत रखा है । हे आम ! तुम्हे बारम्बार नमन है ! आम ने हमारे बचपन के जादुई दुनिया में एक अहम किरदार निभाया है जिसकी शानदार यादें आज भी हमें स्वप्न लोक की सैर करवा ही दिया करती है। सारे जहाँ की बेशकीमती दौलत एक तरफ और एक बालक के हाथ में एक पका आम एक तरफ ।  कोई तुलना नहीं , कोई उपाय नहीं । इतनी शानदार चीज और बातें गुजरे ज़माने की न हो तो बेमानी होगी ।  कमोबेश हर किसी ने एक ही जिंदगी जी रखी है मगर रंग अलग - अलग से रहे होंगे । बातें हमारे बचपन और आम की भी उतनी ही खास है ।

हम उस ज़माने के पुराने पके हुए चावल हैं जो अपने छुटकपन में ही महज आम के टिकोले की गुठली हाथ में लेकर गुठली से ही पूछ लिया करते कि किसकी शादी किधर होगी और फिर इत्मीनान से पूरे मजे लेकर टिकोले को काले नमक और लाल सुखी मिर्च के बुरादे के साथ चटकारे ले लेकर यूँ ही मस्ती में धीरे - धीरे खा लिया करते । उन दिनों आम के मौसम आते ही काले पाचक कि छोटी सी बोतल में काला नमक और लाल सूखी मिर्च के बुरादे हम ठूंस - ठूंस कर पहले ही भर लिया करते और हमारी हाफ पैंट की जेब में वो बोतल पुरे समय साथ हुआ करता ।  हम आम की गुठलियों के बाजे बनाकर भी मस्ती से उसकी पॉपी बजा - बजाकर यूँ...