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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है ।।
इसलिए लोभ शून्य होकर कालचकृ में ही विलीन हो जाता है इसलिए वास्तव में यह गाथा अनन्त व असंभव का ही प्रतीक चिन्ह बनकर स्थापित होकर यह गाथा सिद्ध कहलाती है।।
इस तरह के अनेक प्रयासों के पश्चात वह परमात्मिका ही आत्मा होकर इस गाथा परमात्मा
का स्थान अर्थात् असतिव स्त्रीत्व का दर्जा पाकर इस गाधा एकमात्र सत्य परमात्मा आत्मा का अंश तथा इस गाथा के प्राण साबित हुई।।

तथा हमने इस गाथा के अन्य विषय के लिए इस प्रकार से सोचा है।।"एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त की अलौकिकता की खोज व दास्तान बन गई थी।। जिसके बाद उसी सून्य का परिमाण घोषित उसकी नारित्व व स्त्रीत्व की आसीमता को शून्य बोध करके हमने उसकी योनि👄 व चूत के🖕👅
वीर्य से नायक के औजार🖕 पर लगाकर उसके अस्तित्व की आसीमता का भी स्पष्टीकरण व बोध कर तथा फिर इस तरह नायक के भी द्वारा अपने थूक व मल से योनि👅💋 पर डालकर तथा अपना लम्बा व मोटा औजार उसकी चूत पर पहले धीरे धीरे बड़ी कोमलता से रगड़कर फिर हल्के से उस नायिका परमात्मिका की पहले आगे से चूत में उसे पहले कुछ देर तक रगड़ने व फिसलने के बाद धीरे-धीरे से उसकी चूत👅 में डाल देता है और पहले पहले धीरे-धीरे डालकर धक्क रहा होता मगर उसी समय वह नायक उसके स्तनों से खेल रहा होता उसकी नाभी पर चुंबन 💋कर रहा होता और ऐसे उसके करने से और करते करते वह जब उत्तेजित हो उठती 👅👄थी...तब... वो... और... आगे...बढ़ते...चला जाता है।।
#आगे_बढ़_रहा🙏