सहानुभूति या कुछ और ! ( भाग - २ )
इतना कहकर भावना अपने घर चली गई ।और अपने में ही बुदबुदाने लगी, की आदमी औरत को बस अपनी जागीर समझता है ।अगर वह कुछ करना चाहे तो करने नहीं देते है ।बेचारी सृष्टि पता नहीं कैसी झेल रही होगी यह सब ,ऐसे ही भावना खुद से ही बातें कर रही थी ।बहुत देर से उसके हस्बैंड यह सब देख रहे थे। आखिर में उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने कहा क्या बात हो गई ,तुम बच्चों को स्कूल बस में छोड़ने गई थी ,या मूड खराब करने ।ऐसी क्या बात हो गई जो तुम उखड़ी- उखड़ी सी हो ।अभी तो सब कुछ ठीक था ,भावना ने चिढ़ते हुए कहा की आदमी खुद को...