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मौन है मेंढक
रात के 10 बजे 🌃

चलो यहां आओ मेरे प्यारे मेंढक, आके बैठो मेरे पलंग के नीचे आख़िर आज क्यों छुपे हुए हो अलमारी के पीछे ? क्या कोई चोर है तुम्हारे मन में या कोई बड़ी उलझन आन पड़ी है तुम्हारे जीवन में !

कुछ अनमने उदास से जान परते हो, रौशनी में जाकर अपनी लंबी जीभ से लपककर कीड़े क्यों नही खा आते?
तुम अब भी मौन हो। कहीं तुम्हारी उदासी के पीछे उस मेंढकी का हाथ तो नहीं जो कल छोड़ गई थी तुम्हें किसी और के लिए? ना जानें उसे क्या दिखा उनमें जो तुम्हारे में नही, मुझे तो तुम सब एक से ही लगते हो। मुझसे कोई कुछ कहता भी तो नहीं बस छोड़कर चले जाते हैं। तुम तो उसके अपने थे?

तुम्हें छोड़ गई वो क्योंकि तुम कुरूप हो ; जन्मजात कुरुप। कल को मन बदले उसका या फिर उसे धोका मिले वहां तो वापस भी आ सकती है लेकिन वो वापसी तुम्हरे लिए तभी होगी यदि उसके रास्ते में तुम टाई बांधे कुत्ते की तरह जीभ लटकाए हांफते हुए इंतजार में बैठे मिलोगे; वरना नहीं।

मेरे एकाकी के साथी क्यों कुछ कहते नहीं! पता है नए लोगों से बातें करना मुझे बहुत पसंद है, लेकिन बीच में ही वे हां...हम्म.. करके बातें...