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असमंजस
आज के हालात ऐसे हैं कि हर कोई परेशान, बेहाल है।हम समझ नहीं पा रहे।असमंजस में हैं ,कि हम अपनी परेशानी अपनों को बताये कि न बताएं।
या बताएं भी तो किसको इन हालात में कौन मदद करने आ पायेगा , क्या हम उसकी मदद लेंना चाहेंगे क्या हम उसकी जान खतरे में डालना चाहेंगे।सच कहूं तो आज कि सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हम अपने आप को अकेला महसूस कर रहे हैं और ये अकेलापन कोरोनावायरस से भी ज्यादा खतरनाक है जो लोगों को जीते जी मार रहा है ‌।वायरस कि‌ वज़ह से जो डर दिमाग मेंआ जाता है वो हर किसी को कहीं न कहीं मार रहा है। इस डर को कैसे दूर किया जाए।
आज मैं यूं ही सोचते -सोचते लिखना शुरू कर दी कि आखिर हमको किसका डर है, मरने का ।मरना तो है ही ,और उसी से डर लग रहा है ,और फिर मैं मन ही मन में हंस दी।
लेकिन नहीं हमें अपने लिए नहीं अपनों के साथ छूटने का ज्यादा डर लग रहा है मुझे जो होना है वो हो पर मेरे परिवार को कुछ न हो। बच्चों को कुछ न हो, पति को कुछ न हो इसका डर बहुत ज्यादा है ।
लेकिन इस डर के साथ कब तक जिया जाए। इस डर को खत्म करना ही होगा पर कैसे?
अपने आप को मजबूत करना होगा कि सब अच्छा होगा और लोगों को भी सकारात्मक बात करते हुए मजबूत बनाना होगा। खाली इतना कहना कि हम तुम्हारे साथ है जरुरत पड़ने पर हम तुम्हारे पास पहुंच जाएंगे बहुत से लोग तो यूं ही ठीक हो जाएंगे।
अपने आप को काम में व्यस्त रखो।काम का मतलब घर का नहीं वो तो वैसे भी करना है मन हो या ना हो।
यहां मेरा मतलब मन के काम से है। कुछ क्रिएटिव करना जैसे मैंने क्या किया किचन आर्गनाइज करने के लिए खराब डब्बों से खूबसूरत सब्जी रखने का बास्केट बनाया जिससे फ्रिज में काफी जगह बन गई।
कहानी लिखनी शुरू की। बच्चों के साथ कैरम खेलती हूं। परिवार के लोगों से बात करके अपना मन भी हल्का करें और उनको भी हिम्मत बधाये।
यह दिन भी गुज़र जायेगा।