...

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जरूरत...
ये मै क्यूं लिख रही हूं...
इसकी एक वजह है.…
वो ये की अक्सर हमें सिखाया जाता है कि उसकी हमेशा मदद करो जिसे आपकी जरूरत हो.....
ना कि उसकी जिसकी आपको जरूरत हो..मै आपसे एक बात कह रही हूं जो मैंने महसूस की शायद आप भी करोगे......
एक दिन मै कहीं गई थी और एक चौराहे के किनारे खड़ी थी...मैंने देखा कि एक जूस वाले अंकल अपना ठेला लगाए बैठे हुए थे और आते जाते हर आदमी को ऐसे देख रहे थे जैसे वो सोच रहे हो कि अगर आज कोई ग्राहक नहीं आया तो मै कैसे अपने बच्चों को जवाब दूंगा उन्हें क्या खिलाऊंगा.....
मगर हर आदमी उनकी तरफ देखना तो दूर ऐसे गुजर रहा था जैसे वहां कोई हो ही ना......
आप बताओ अगर वो किसी खाने पीने या चाय का ठेला होता तो वहां से गुजरने वाला लगभग हर आदमी एक बार जरूर रुकता.....।
मैंने कुछ गलत कहा नहीं .......
तो जाड़े में लोग शादियों में आइसक्रीम खा लेंगे लेकिन उस जरूरतमंद इंसान के ठेले पर रुककर एक गिलास जूस नहीं पिएंगे....
डायटिंग के लिए सुबह नारियल पानी पी लेंगे और तो और बाज़ार से उस एक गिलास जूस से महंगा पैकेट का जूस लेकर हफ्तों तक पिएंगे मगर उनका जूस नहीं ले सकते ....
अरे !सब ये क्यूं नहीं समझते की उनकी मजबूरी उन्हें ये करवा रही है...वरना जानते तो वो भी होंगे कि इस जाड़े में जूस कोई नहीं पिएग...मगर फिर भी उनकी जरूरत ही उन्हें मजबूत करती है...और वो इस उम्मीद से आते है कि कोई तो उनको समझेगा मगर हम फुर्सत ही कहां है...हना????
मेरी बात झूट लगे तो मत मानिएगा मगर ऐसे हजार जूस वालो को आप रोज जाड़े में नजरअंदाज करते होंगे ...क्यूंकि उनकी जरूरत आपको अभी नहीं है....
इसीलिए कहां गया है...
"जरूरत हो तभी उसकी जरुरत
याद आती है....
कहां फुर्सत है बिना मतलब
किसी को याद करने की..."
पलक 🙃