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खीर
शाम के पाँच बजे थे। डोरबैल बजी तो खुशी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। शालिनी को देखते ही खुशी उससे लिपटकर बोली, "माँ, मैं ऑनलाइन कविता गायन प्रतियोगिता में प्रथम आई हूँ।"

थकी हुई शालिनी भी हौले से मुस्कुरा दी और बोली, "अच्छा बेटा पहले पानी दे दे और फ़िर चाय बना दे। सुन बेटा मेरे बैग से लंच बाक्स भी निकाल दे और चाय की थरमस भी।"

बैग में से सामान निकालते हुए खुशी बोली, "आज चाय नहीं पी आपने! खाना भी बचा हुआ है। कितनी बार कहा कि काम करो पर अपने खाने पीने का ध्यान रखा करो।"

"और हाँ, हाथ का दर्द कैसा है? कुछ कम है या नहीं?"

शालिनी के पास दस साल की खुशी के किसी प्रश्न का उत्तर नहीं था।

चाय पीते हुए शालिनी की आँखें भर आईं। उसकी छोटी सी बेटी कितनी बड़ी हो गई थी।

"माँ आज खीर बना लो, मेरा बहुत मन कर रहा है।"

"आज नहीं बेटा, कल बना लूँगी।"

"क्यों माँ, क्या दूध नहीं है? या चावल? या चीनी? अरे! याद आया कल किशमिश खत्म हो गई थीं। कोई नहीं माँ किशमिश मत डालना पर खीर तो बना दो।"

खुशी लगातार बोल रही थी और शालिनी ने कुछ सुना ही नहीं क्योंकि सोफे पर सिर टिकाते ही न जाने कब उसकी आँख लग गई।

जब खुशी ने देखा के शालिनी सो गई तो वह चुप हो गई।

एक घंटे बाद जब शालिनी उठी तो उससे पानी का गिलास भी नहीं उठाया गया। अपनी माँ का चेहरा खुशी बहुत अच्छे से पढ़ लेती थी, जल्दी से उसने शालिनी को दर्द की गोली दी और उसके हाथ में दर्द की दवाई की ट्यूब मलने लगी। बाद में गर्म पट्टी भी बाँध दी।

"माँ आपने मुझे मैगी बनानी सिखाई थी न, आज मैं डिनर में पापा को मैगी बना कर दूँगी। वो भी हैरान हो जाएँगे। आप भी मैगी खा लोगी न, बोलो न माँ।"

"हाँ, मेरे बच्चे।" इससे अधिक शालिनी कुछ न बोल सकी।

वह समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहे और क्या करे। उसके नौकरी करने के कारण उसकी बेटी समय से पहली ही बड़ी जो हो गई थी।

और खीर... उसे बनाने का समय कहाँ है शालिनी के पास! जब कभी हाथ की चोट ठीक होगी या वह छुट्टी लेगी उस दिन बना देगी वह खीर।

बेटी के प्रथम आने की खुशी शालिनी को थी बस जताने के लिए समय नहीं था उसके पास।

इंतज़ार कर रही है खुशी एक कटोरी खीर का...

© Shweta Gupta