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वापसी में कोई मंज़िल नहीं... ✍️
मैं पत्थर बन चुका हूं या तुम्हारे शब्द मुझे आज खोखले महसूस हो रहे हैं???देखो! जब विश्वास का धागा टूटता है तो चाहकर भी ही दोबारा उस इंसान पर भरोसा नहीं कर पाते । दिल से ज़्यादा आज दिमाग दौड़ रहा है तुम्हारे कहे हर एक शब्द पर, और दिल ख़ामोश है.... जानते हो क्यों ??? क्योंकि तुमने इसको जो दर्द दिया है न ये उस दर्द से ऊपर उठ चुका है अब ... जानता है अब , कि जो इंसान जानबूझकर तुमको तकलीफ़ दे, वो कभी भी तुम्हारा अपना नहीं हो सकता ।

हो सकता है तुम्हारा पछतावा सच हो, हो सकता है तुमको अपने किए पर खे़द हो.... लेकिन फ़िर भी , मेरा तकलीफ़ में गुज़रा हुआ वक्त वापिस नहीं आएगा और और न ही खोया विश्वास वापिस आ पाएगा .... मुबारक हो तुमको... कि अपनी गलतियों का अहसास हुआ तुमको .... लेकिन शुक्रिया ! हमारी जिंदगी में अब वो जगह ही ख़त्म हो गई ...

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© संवेदना