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स्त्री हूँ मैं
एक रिश्ता ऐसा भी जिसमें स्वार्थ नहीं
सिर्फ अपनापन और लगाव

लता और भूमि दोनों चचेरी बहनें हैं
दोनों का बचपन साथ बिता है

पढ़ाई भी दोनों की साथ ही हुई दोनों
पढ़ाई के लिये अपने छोटे से शहर रायगढ़ से दूर बैंगलोर में हॉस्टल में रह कर अपनी B A M S की शिक्षा पूर्ण की ।

भूमि शादी के बाद अपने वैवाहिक जीवन मे व्यस्त रहने लगी

और अपने डॉक्टर बनकर कुछ करने का जो सपना था उसको पूर्ण विराम देकर समझौता कर लिया

शादी भी उसकी पसंद से हुई थी ,पति भी उसका ख्याल रखता था

उनका आपसी तालमेल सही नहीं बैठ रहा था ।कुछ सालों से भूमि खुद को कोसती थी कि जिसके लिए मैंने अपना सबकुछ दावं पे लगा दिया ।

आज वही मुझे महत्व नहीं देते

लता की शादी भी हो चुकी थी
उसका वैवाहिक जीवन तो बद से बत्तर था
उसके पति बहुत शक करते थे उसकी छोटी छोटी बातों पर

भूमि इस मामले में अपने पति को अच्छा मानती थी

क्योंकि दोनों के बीच commucation gape था लेकिन वो प्यार भी करते थे

लता का पति बहुत ज़्यादा शक करता था
उसके social messging apps को monitor करता था

लता अपने मम्मी पापा से भी बात करती थी तो उसको monitor करता था

रिश्ता वहाँ कमजोर हो जाता है
जहाँ चरित्र को लेकर संदेह पति अपने पत्नी पे करने लगे

वो भी बिना कीसी प्रमाण के

भूमि और लता की वैवाहिक जिंदगी मानो ICU में वेंटिलेटर आखीरी साँसों के जंग लड़ रही हो

भरोसे का CPR देकर दोनों रिश्ते में आयी खटास को दूर करने की कोशिश रहे हैं

लेकिन ये कोशिश उनको खुशियां दे पायेगी या वो दोनों ऐसे ही खुशियों के साथ समझौता कर लेंगे।

स्त्री हूं मैं नारी शक्ति कड़वे घूट
पीकर जी रही हूँ मैं

पूजा मेरी नवदुर्गा नौ रूपो की
भक्ति में तेरी जी रही हूँ मैं

जीवन मेरा जीवन नहीं
एक आग की अंगार है

स्त्री कभी बेबस नहीं न कभी लाचार है
परिवार को जोड़ने का स्त्री ही आधार है

मैं थी बेटी अब पत्नी और माँ हुई
सब के दर्द पे रोयी मेरे दर्द पे न आह हुई

सब ख्वाहिशो को दबाकर न कोई चाह हुई
मंजिल थी करीब मेरे ,मुश्किल मेरी राह हुई

स्त्री जहाँ मुस्कुरा दे खुशियों की बहार है
उसको तेरा धन नहीं ,चाह बस व्यहार है

आज मन कुंठित हुआ ,देखकर हालात है
मैं चुप ही रहूं
कभी तुम भी पूछो
बता मन में तेरी कोई बात है

स्त्री हूं मैं नारी शक्ति कड़वे घूट
पीकर जी रही हूँ मैं

पूजा मेरी नवदुर्गा नौ रूपो की
भक्ति में तेरी जी रही हूँ मैं

जीवन मेरा जीवन नहीं
एक आग की अंगार है

स्त्री कभी बेबस नहीं न कभी लाचार है
परिवार को जोड़ने का स्त्री ही आधार है

© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮