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चाय और वो
चाय और वो......

ग्रेजुएशन के दौरान उसका रोल नबर सात था
और मेरा आठ
हम एक दूसरे से टॉम एंड जैरी की तरह
अक्सर लड़ते रहते थे
ठीक 12:30 जैसे ही घंटी बजी
मै सीधा कॉलेज की कैंटीन में गया
और एक कप चाय की फरमाइश की
मै अपनी घड़ी में समय देख रहा था
अब 12:31 मिनट हो गए थे
अचानक खचाखच भरे कैंटीन में वो प्रवेश करती है
मेरे सामने वाली एकमात्र खाली पड़ी कुर्सी पर
मजबूरन वो बैठ जाती है
अरे वाह! आज तो रोल नबर सात, आठ साथ-साथ
मजाकिया अंदाज में सहपाठी सुरेश टिप्पणी करते हुए
पास से गुजरता है
अभी मैंने चाय के दो घुट लिए ही थे अचानक
मोबाइल में मैसज आने की वजह से मैंने बाकी चाय का कप मैज पर रखा जहां सामने वो बैठी थी
कुछ पल के उपरांत
मैसेज पढ़ते पढ़ते मैंने एक हाथ
चाय के कप की और बढ़ाने की कोशिश
की तो, कप गायब!
एक क्षण भी नहीं लगा मुझे पूरा वाकया समझने में
क्योंकि उसने अपना कप मेज की दूसरी तरफ
रख दिया था!
ये मेरा कप था? मैंने उसे प्यार से झिडकते हुए कहा
क्या ? ये तुम्हारा कप था
आंखो के आकार को फैलाकर आश्चर्यचकित भाव से उसने कहा
तुमने मुझे अपनी जूठी चाय पीला दी
मै किसी की जूठन नहीं खाती
चलो छोड़ो कोई बात नहीं
मैंने उसे शांत स्वर में कहा
तुमने मुझे जूठी चाय पिलाई है
मै क्षत्राणी की तरह
खून का बदला खून से
और चाय का बदला चाय से लूंगी
मै कुछ समझा नहीं
मैंने गरदन हिलाकर कहा
तुम्हे भी अब मेरी जूठी चाय पीनी होगी
उसने अपना कप दाहिने हाथ से मेरी और
बढ़ाते हुए कहा
मैंने अस्वीकृत भाव से कप
को पकड़ लिया
मेरे सामने पियो
उसने कलक्टरी आदेश दिया
मैंने कागज के कप को जैसे ही उठाया
एक छोर पर उसके लबों से बने निशान से मुझे
कागज के कप पर हलकी सीलन महसूस हुई
मैंने उसी ओर से चाय का घुट भरा
वास्तव मैं वो फीकी चाय शायद मुझे
शहद से भी मीठी लग रही थी
पूरी पीनी है!
उसने मुझे हंसते हुए कहा
चाय खतम होते होते हमे देर हो गई
रोल नबर सात आठ चलो क्लास में
सुरेश ने पीछे से आवाज लगाई और हम
वापिस अपनी क्लास में चले गए
आज उस बात को पांच बरस पूरे हो गए
कुछ हफ्ते पहले मेरा सहपाठी सुरेश जो अब उसकी तरह सरकारी अध्यापक है
मुझसे मिलने आया
और भाई आशू!
आखिर सात आठ का साथ छुट ही गया
पिछली साल हुई उसकी शादी की और मेरा ध्यान खींचते हुए मस्ती भरे स्वर में उसने कहा
नहीं! आज भी सात आठ तो साथ साथ है..
मैंने अपने मोबाईल के शुरुवाती चार अंक दिखाते हुए उसका प्रतिउतर हलकी मुस्कान के साथ दिया
हां भाई! मिर्जा गालिब हां..
ये भी सही है, कहकर
उसने मुझे सहमति दी
ये एक अजीब इतेफाक ही है
हमारे रोल नबर मेरे मोबाईल के शुरुआती चार अंक (7877) है और जिस समय हम केंटीन में मिले (12:31) वो समय अन्तिम चार अंक (1231) है
शायद यही वजह है कि मैंने
आज भी अपना मोबाइल नबर नहीं बदला..।
(आशी) मुझे इसी नाम से बुलाती थी