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एक गलत फैसला (पार्ट 2)
करीब दो घंटे बाद दरवाज़े पर एक दस्तक होती है। एक एक करके महमानों ने भी आना और सजावट की प्रशंसा करना आरम्भ कर दिया। थोड़ी देर बाद पंडित जी भी आए और थोड़ी गप शप करके उनको लड़की को भी बुलाने को कह दिया। मीठी सरला के साथ सबके सामने आती। है तो उनकी सुंदरता को देखकर सब दंग रह जाते हैं।

"लो पंडित जी दुल्हन आ गई।" कहकर मीठी मुस्कुराने लगी।

बड़ी धूम धाम से सगाई करने के बाद उनकी शादी का दिन भी तय कर दिया जाता है जो कि आज से ठीक तीन महीनों बाद का होता है। सबके चहरों पर खुशी और लबों पर दुवाओं को देखकर सरला की आँखों में पानी आ जाता है।

रात्रि 9-10 बजे तक सभी लोग खाना खाकर अपने-अपने घट चले जाते हैं।

"माँ! क्या हुआ आपको? आप खुश नहीं हो ?" अपनी माँ की निगाहों में आंँसुओं को देखकर मीठी ने पूछा।
"नहीं वो बात नहीं है। मैं बहुत खुश हूंँ। वो तो बस ..." सरला बोली।
"ओहो! बीती बातों को याद करना छोड़ दो। और अब सो जाओ सुबह आपको दफ़्तर भी जाना है।" मीठी इतना कहकर अपनी माँ के सिरहाने जाकर बैठ जाती है। फिर माँ को सुलाते सुलाते वहीं बिस्तर के एक कोने में सर रखकर सो जाती है।

सरला रात भर करवट ही बदलती रहती है मानो कोई बात हो उसके मन में जो उसको अन्दर ही अन्दर खाए जा रही हो।

अगली सुबह से फिर सब अपनी पुरानी दिनचर्या में ढलने लगते हैं। सब अपने-अपने काम और शादी की तैयारियों में लग जाते हैं।

© pooja gaur