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खामोशी
खामोशी
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शकुंतला घर से बाहर निकलने ही वाली थी कि जोरों की बारिश शुरू हो गई, हवा जोरों से चल रही थी बादलों की गरजने की आवाजें रह- रह कर सुनाई पड़ने लगी। उसने कहा - यह क्या हो गया , अभी ही बारिश को होना था। और आंधी..... दरवाजा खोलते ही बारिश की बूंदों के साथ हवा घर की तरफ आने लगी।

बेटी थोड़ी देर रुक कर चली जाना। देखो बाहर कितना बारिश हो रहा है। उसकी मां रुक्मिणी आवाज लगाते हुए बाहर आती है।

हां मां , वह तो मैं देख रही हूं । ऑफिस के लिए कितना लेट हो जाएगा। कल भी जाने में लेट हो गया था। आज लेट पहुंची तो बॉस का गुस्सा सातवें आसमान पर होगा- शकुंतला अपनी मां से कहती है।

वह सब तो ठीक है बेटा बारिश भी तो हो रही है । कैसे जाएगी तू और देखो हवा कितनी जोरों की चल रही है।

शकुंतला अफसोस करते हुए आसमान की तरफ देखने लगी - हे ईश्वर बारिश को जल्दी छूट जाने को कहो।

पीछे किसी के गिरने की आवाज आई । पीछे मुड़कर देखती है , तो उसकी मां नीचे फर्श पर गिरी पड़ी है।

वह दौड़ कर उसे उठाती है और पानी से उसके चेहरे पर छींटे मारती है अपने भाई को आवाज लगाते हुए बोली।

सूरज जल्दी आना ........ मां फिर से बेहोश हो गई है।

शकुंतला उसे उठाकर सोफे पर बैठाती है ।

सूरज आते ही अपनी मां से पूछा -अब मां तबीयत कैसी है। रिलैक्स महसूस हो रहा है।

हां बेटा , पता नहीं अचानक क्या हो गया था। थोड़ा चक्कर आया और मैं गिर पड़ी । उसके बाद कुछ मालूम नहीं - रुकमणी शकुंतला का हाथ पकड़ते हुए बोली।

मां , मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि दवाई टाइम पर लिया करो लेकिन तुम हो की..... मेरी एक भी बात नहीं रखती।

बेटा दवाई मैं रोज टाइम पर ही लेती हूं, लेकिन मेरी बीमारी ऐसी है कि ठीक होने का नाम ही नहीं लेती।

शकुंतला टेबल पर रखे हुए दवाई की शीशी के ढक्कन को खोल कर देखती है । उसमें एक भी दवाई नहीं देख कर मां से पुछती है - तुम कब ली थी मां, दवाई ।

इसमें तो एक भी नहीं है । तुमने बताया क्यों नहीं कि दवाई खत्म हो गई है। तुम भी मां हद करती हो। शकुंतला गुस्से में मां की तरफ देखते हुए बोलने लगी।

बेटा कल ही खत्म हो गई है। मैं तुझे बोलना भूल गई।

रुकमणी, शकुंतला के सिर पर हाथ फेरते हुए कहती है - बेटा तुम अपनी सारी सैलरी क्या मेरी बीमारी पर ही खर्च कर दोगी ?

अपने लिए भी तो बचा कर तुम्हें रखना है। दो दिन से सूरज स्कूल नहीं गया है उसका भी तो फीस देना है। कहां से लाएगी तू इतने पैसे । महिने लगने में अभी दस दिन बाकी है।

मां , मैं कहीं से भी पैसे का इंतजाम कर लूंगी , लेकिन तुम्हारे बीमारी का क्या .....?

अपनी मां का हाथ पकड़ते हुए शकुंतला लंबी सांस लेते हुए प्यार से समझाती है - मां तुम दवाई लोगी तभी तो तुम्हारी तबीयत ठीक हो पाएगी।

पापा को तो खो चुकी हूं अब तुम्हें नहीं खोना चाहती । तुम चली जाओगी तो हम दोनों भाई बहनों का क्या होगा।

किसके सहारे हम दोनों रहेंगे, इतना कहकर वह रोने लगती है।

बेटा बारिश भी बंद हो गया है । तुम्हें ऑफिस जाने में लेट हो जाएगा।

हां, मैं निकल ही रहीं हूं इतना कहकर बाहर की तरफ जाने लगती है।

सूरज मां का ख्याल रखना - जाते-जाते शकुंतला अपने भाई से कहते गई।

मां थोड़ी देर यहीं पर लेट जाओ मैं खाना बनाने के लिए जा रहा हूं और हां, देखना किसी चीज की भी जरूरत पड़े तो मुझे आवाज लगा देना और यहां से कहीं जाना मत , जब तक मैं ना आ जाऊं - सूरज अपनी मां को डांटते हुए कहा और किचन की तरफ चला गया।

रुकमणी अपने पति की फोटो को दीवार पर टंगे देखकर पंद्रह साल पहले बीते हुए दिनों को याद करने लगी। जब पति कि शहीद हो जाने की खबर आई थी। और देश के दुश्मनों ने उन्हें गद्दारी का सबूत दे दिया। और तब से आज तक रुक्मिणी खुद को कभी माफ नहीं कर पाई है।

क्रमशः...??