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मेरा मैं
मेरा मैं 34 वर्ष का होने को है, 34 वर्ष स्वाहा हो गये, मैं की छाया मै
मौन हूँ,नींदे बैरी हुई हैं, साधना मै जाता हूँ तो, सांस लेना भूल जाता हूँ, अपने विचारों के जाले मै उलझ जाता हूँ,मरते मरते याद आता है सांस भी लेनी होती है,बंदगी भी जिंदा रहते पहले मारती है,दिल्ली सस्ती शराब के आगोश मै है,सब मस्त हैं,अहोभाग्य, बेहोश लोगो के इर्द गिर्द सत्ताएं होश मै हैं बस,हिन्दू मुस्लिम नामक मुर्गे कनाट प्लेस के प्रांगण मै लड़ा रहे हैं,कामचलाऊ पत्रकार, रेड लाइट एरिये मै दर्शन की भीड़ है बस भाव लगते हैं,सौदा होता नहीं, जिस्म की सेल तो बारह मासी है शराब की स्कीम अब गई तब गई, अंदर तक उड़ेल लेनी है तब तक,जिस्म यहीं मिलेंगे बाद भी,और कम दाम मै छरहरे,शराब की स्कीम खत्म होने पर फिर यहीं तो रह जायेंगे खाने और नोंचने को, फिर हरिद्वार ले आई नियति, यहाँ गुरु चेलों को और चेले गुरुओं को ढूंढ़ते पाये,यहाँ दिन मै जिस वेग से ऊर्जा उर्द्धवगामी होती है, शाम होते होते पैरों के नीचे आती हुई देखी मैंने, कुछ नाभि पर अकड़ी हुई कुछ थी सार्थक ऊर्जायें मठों के बाहर, गंगा के किनारे, निरआश्रित, बहती हुई गंगा की तरह,यहाँ भी बस पड़ाव हैं मंजिल नहीं,फोन नहीं ले गया इस अज्ञातवास मैं इक्कट्ठा करने के दिन गये, आप सभी को मेरा प्रेम रजनीश सुयाल
© rajnish suyal