धर्म और इंसानियत
लोग पूछते है की धर्म क्या है
धर्म की कोई परिभाषा तो नहीं है लेकिन..
कोई ऐसा रास्ता जो मनुष्य की विचारधारा से अलग हो और जिस पर चल कर एक अनपढ़ और ज्ञानी,, अमीर और गरीब,, काला और गौरा इस पर चल कर सच्चाई का मार्ग पा ले उसी को धर्म कहते है
मार्ग वो जिसपर इंसानियत का ज्ञान प्राप्त होता है जो मनुष्य को मनुष्य के प्रति प्रेमी बनाता है
आज दुनिया मैं लाखों किताबे होने के बाद भी अलग अलग जगह के अलग अलग लोग अलग अलग धार्मिक किताबों को पढ़ने वाले और मानने वाले है.. इसलिए नहीं की वो लाखों किताबे मनुष्य को कुछ सिखाती नहीं है बल्कि इसलिए ये की ये धार्मिक किताबे उन लाखों किताबों से अच्छी है जिसमे एक बुरे इंसान को अच्छा बनने की प्रेणना छुपी हुई है
ये दुनिया बहुत विविधता वाली है यहां कोई एक खुदा को मानकर अपना सब कुछ कुर्बान कर देता है तो कोई करोड़ों भगवान होने के बाद भी यही कहता है कि है कहां भगवान...?
इसलिए मेरा विचार है कि धर्म या भगवान या रास्ता या फिर इंसानियत का मार्ग एक ही अच्छा है ... हजार नही...!
धर्म की कोई परिभाषा तो नहीं है लेकिन..
कोई ऐसा रास्ता जो मनुष्य की विचारधारा से अलग हो और जिस पर चल कर एक अनपढ़ और ज्ञानी,, अमीर और गरीब,, काला और गौरा इस पर चल कर सच्चाई का मार्ग पा ले उसी को धर्म कहते है
मार्ग वो जिसपर इंसानियत का ज्ञान प्राप्त होता है जो मनुष्य को मनुष्य के प्रति प्रेमी बनाता है
आज दुनिया मैं लाखों किताबे होने के बाद भी अलग अलग जगह के अलग अलग लोग अलग अलग धार्मिक किताबों को पढ़ने वाले और मानने वाले है.. इसलिए नहीं की वो लाखों किताबे मनुष्य को कुछ सिखाती नहीं है बल्कि इसलिए ये की ये धार्मिक किताबे उन लाखों किताबों से अच्छी है जिसमे एक बुरे इंसान को अच्छा बनने की प्रेणना छुपी हुई है
ये दुनिया बहुत विविधता वाली है यहां कोई एक खुदा को मानकर अपना सब कुछ कुर्बान कर देता है तो कोई करोड़ों भगवान होने के बाद भी यही कहता है कि है कहां भगवान...?
इसलिए मेरा विचार है कि धर्म या भगवान या रास्ता या फिर इंसानियत का मार्ग एक ही अच्छा है ... हजार नही...!