वो घाटी की रात
बात 1991 की हैं. ब्यावर से चित्तौड़ जाने के लिए, ब्यावर की घाटी पार करके विजयनगर जाना पड़ता था.
यह घाटी 15 किलोमीटर की थी, पतली सी सड़क, गाड़ी को घुमाना भी संभव नही था.
लूटमार के डर से ये रास्ता अख्सर वीरान रहता था, पर ये शॉर्टकट था, दूसरे रास्ते 50 किलोमीटर का घुमाव डाल देते थे.
विक्रम मामा कुछ काम से ब्यावर आये थे और 8 बज गयी थी, शॉर्टकट लेने के अलावा कोई चारा ना था, नही तो घर पहुंचते पहुँचते 1 बज जाएगी.
वैसे भी वो हिम्मती इंसान हैं, उन्होंने घाटी का रास्ता पकड़ लिया.
घाटी भूतों की कहानियों के लिए भी मशहूर थी. अक्सर ड्राइवर लोग कभी बूढे आदमी, कभी औरत को देखने का दावा करते थे.
मामा इन सब बातों को नही मानते थे, वो कहते थे, जब अपनी आंखों से देखूंगा, तभी मानूँगा.
मामा को भूत से...
यह घाटी 15 किलोमीटर की थी, पतली सी सड़क, गाड़ी को घुमाना भी संभव नही था.
लूटमार के डर से ये रास्ता अख्सर वीरान रहता था, पर ये शॉर्टकट था, दूसरे रास्ते 50 किलोमीटर का घुमाव डाल देते थे.
विक्रम मामा कुछ काम से ब्यावर आये थे और 8 बज गयी थी, शॉर्टकट लेने के अलावा कोई चारा ना था, नही तो घर पहुंचते पहुँचते 1 बज जाएगी.
वैसे भी वो हिम्मती इंसान हैं, उन्होंने घाटी का रास्ता पकड़ लिया.
घाटी भूतों की कहानियों के लिए भी मशहूर थी. अक्सर ड्राइवर लोग कभी बूढे आदमी, कभी औरत को देखने का दावा करते थे.
मामा इन सब बातों को नही मानते थे, वो कहते थे, जब अपनी आंखों से देखूंगा, तभी मानूँगा.
मामा को भूत से...